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स्त्री-धन
[तेरहवां प्रकरण
यानी पहिले माताको, फिर पिताको, और पीछे पिताके बादके वारिसको मिलता है। यदि पिताके बादका वारिस न हो तो माताके बादके वारिसको मिलेगा, देखो.-8 Bom. H. C.O. C 244; माना गया है कि बापकी बहनके होते माका भाई पारिस नहीं होता।
नोट-मिताक्षराके अनुसार स्त्रीधनकी वरासतका क्रम ऊपर बताया गया है-'शुल्क' प्रायः सभी स्कूलों में मिताक्षराके अनुसार ही माना गया है मगर दूसरे किस्मके स्त्रीधनमें मतभेद है इस लिये हम भिन्न भिन्न स्कूलों के अनुसार धिनकी वरासतका वर्णन आगे करते हैं ।
स्कूलोंके अनुसार स्त्रीधनकी वरासत
दफा ७६६ बनारस स्कूल
बनारस स्कूलमें जैसा कि मिताक्षराका अर्थ स्पष्ट माना जाता है उसके अनुसार स्त्रीधनकी वरासत होती है, देखो-दफा ७६५. दफा ७६७ मिथिला स्कूल
मिथिला स्कूलके अनुसार संतानवाली विवाहिता स्त्रीके स्त्रीधनकी घरासत इस प्रकार होती है--
(१) शुल्क-शुल्ककी वरासत मिताक्षराके अनुसार होती है, देखोदफा ७६५.
(२) विवाहके समयकी भेटें--(परिनैय्या) जिसमें घरका असबाब, शीशा कंघी इत्यादि शामिल हैं, लड़कियोंको मिलता है। उनके न होने पर स्त्रीके पुत्रोंको जैसा कि मिताक्षरामें कहा गया है, देखो-दफा ७६५.
१-वारी लड़की। २--व्याही गरीब या संतानरहित लड़की। ३-व्याही खुशहाल या संतानवाली लड़की। ४--बेटीकी बेटी। ५--बेटीका बेटा इत्यादि।
ऐसा मालूम होता है कि यह नियम सब प्रकारसे 'यौतक' स्त्रीधन (दफा ७५५ ) से लागू होता है कमसे कम ब्राह्म विवाहकी रीतिसे व्याहीहुई स्त्रीके मामलोंसे अवश्य लागू होगा।
(३) दूसरे प्रकारके स्त्रीधन- दूसरी तरहके स्त्रीधनके वारिस पुत्र और कुमारी लड़कियां मिलकर समान भाग लेती हैं और गरीब लड़कियां भी