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भविसयत्तकहाए घत्ता । कोसियहो विरत्त धम्मसवण निसुणेवि नर । तहो आसमि जति कित्तिसेण धणमित्तु पर' ॥१६॥
___ एकोनविंशतितमः सन्धिः । तहो आसमि ताई दिढचारित्तवियक्खणई। अणुरत्तमणाई तोवि अहिंसालक्खणइं ॥ तेहिं विहिंमि पियदसणलुडहिं अमुणियपरमागमि अविलुद्धहिं । कोसियनिलइ गमणु न पमायउ चिरपडिवनगुणिहिं निज्झायउ । सोवि ताहं उवरोहपरंपर हुउ सणेहु सम्भावनिरंतरु । एकहिं दिणि वियालि कीलंति वुच्चइ नंदिमित्तु धणमित्तिं । अहो गुणमाल बहुग्गुणभरियहो मणि अचरिउ वहइ तउ चरियहो ।
अज्जु गेहि सामग्गु नियच्छइ जाइवि कहहि किंपि जं पुच्छइ। घत्ता । तो नंदिसुएण जंपिउ सरलसणेहउ ।
अत्यमियई सूरि तउ घरि मित्त न जामि हउं ॥१॥ तो धणमित्तु झत्ति उरि कंपिउ सच्चउ मित्त एउ पड़ जंपिउ । दियह मुएविजा नयणाणंदिरि निसिहि न जाहि कहिंमि महु मंदिरि। एत्तिउ कालु मित्त नउ लक्खिउ ताम न मुअमि जाम न विअविवउ । मंछुड्डु अस्थि कावि तउ निडी पणइणि पणयसणेहसमिद्धी । रयणिहिं आण ताहि नउ भंजहि सरसपियम्मगुणिहिं मणु रंजहि । पभणइं नंदिमित्तु बहुजाणउं रायसिहि तुहुं पउरि पहाण। तउ पुच्छंतहो गुज्झु न रक्खमि निसिहिं न जेण जामि तं अक्खमि । भोयणवार तुम्ह जा सारी निसि पओसि सज्जणहं पियारी ।। तित्थु पवित्ति मज्झु नउ जुज्जइ रूसहि तुहुं जइ तहवि न भुजइ ।
अन्नमि तं देखणहं न सक्कमि निसिहिं पओसि तेण नउ दुक्कमि । घत्ता । पभणइं धणमित्तु महु अञ्चरिउ जाउ मणहो ।
पइवजिउ जेण कवणु दोसु निसिभोयणहो ॥२॥ भणई सुमित्तु नंदिगुणवंतउ निसिभोयणदोसहिं पजत्तउ ।
वरि पिउ मज्जु मंसु महुभक्खिउ वरि परतियमुहकमलु निरिक्खिउ । १ C adds इय भविसत्तकहाए पयडियधम्मत्थकाममोक्खाए बुधणबालकयाए पंचमिफलवण्णणाए धणमित्तकित्तिसेणसंबंधवण्णणो णाम एकूणविसतिमो संधी सम्मत्तो ॥