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भविसथत्तकहाए घत्ता । तो भणइ नरिंदु जीवहो जं परलोयहिउ ।
कहि अम्ह मुगिंद परम धम्मु सो केम थिउ ॥ ११ ॥ पह पुच्छइ पुलयविसहदेहु जाणमि संसारु असारु एह । जाणमि चउगइभवभमगदुक्खु जाणमि माणुसुवि हवेइ रुक्खु । जाणमि संजोयहो फुडु विओउ जाणमि अणिच्चु संपयविहोउ । जाणमि जरमरणावच्छ एम तं कहि न पडिजइ तेत्थु जेम। तं निसुणिवि वुच्चइ मुणिवरेण अहो नरवइ किं बहुवित्थरेण । वयदंसणिनाणिचरुित्तरंमु जो करइ अहिंसापरमधम्नु । पडिवन्नवयणु निग्गंथरूवि सो न पडइ तहिं संसारकूवि । अह कहमि धम्मु जं जेम होइ परु दीसइ अप्पसमाणु लोइ ।
अप्पणु संपजइ पीड जेण तं परहु न किजइ निच्छएण । घत्ता । नउ हम्मइं जीउ नउ बोल्लिज्जइ अलिउ जणि ।।
तह लोइविरुडु लोहु न किजइ परहो धणि ॥ १२॥ परतियपरिहरणि महंतु धम्मु अहिलासु करइ तं तहो अहम्मु । जो लेइ परिग्गहु अप्पमाणु अविणासु अणासु अदिनदाणु। पर संचइ संचइ एम अत्यु इहरत्ति परत्तिवि तहो अणत्यु । जो पुणु संतोसहु नियनु लेइ तहो तं जि धम्मकारणु निएइ । जो मज्जु मांसु महु परिहरेइ अण्णुवि निसिभोयणु नउ गसेइ । जइ पालइ तो तहो तं जि धम्मु अह सिढिलउ तो अकयत्थु जंमु । जइ पयहिं पयत्यहिं सद्दहाणु तो तं जि धंमु धम्महो पहाणु । अह मन्नई मणि विवरीउ भाउ तो तं जि तासु परिणवइ पाउ । विणिवारइ जइ दिजंतु दाणु तो अंतराउ वडावमाणु । अह देइ दियावइ सिढिलकम्मु नउ देइ जइ वि तो तासु धम्नु । जिणापडिम हरइ उवहसइ साहु तो तासु नरयपंथावराहु ।
जिणभवणु करावइ जो पसत्थु तहो धम्मु वित्थयारहो अणत्थु । घत्ता । तो पभणइं मंति किं जंपहि मज्झत्थमणु ।
उवसंतहं नाह कहिं जिणसमयसमायरणु ॥ १३ ॥ तो मंतिहि वयणि कियायराहं पुच्छंतहं सयलहं नायराहं । पायडिवि समयसंकेउ रम्मु वनरिउ मुणिंदिं परमधम्मु ।