________________
नमो सन्धी
चिरुपुर उ पढमु जिणु होंतउ लोउ कोडि पुव्वहं जीवंत । महिं तासुवि दहमइ भाविं कवणु भोउ भुंजिज्जइ आएं । दसलक्खदं पुवई जीविजइ एक्कु लक्खु बालत्तणि हिज्जइ । बीयइ लक्खि पवडियअंगड तरुणितरललोयणसुहिसंगउ । तिहिं जोव्वणवियारु परियत्तइ चउहिं महामइपसरु नियत्तइ | पंचमि सुहृवि थिरु गंभीरहो चलइ तेउ लायन्नु सरीरहो । नरवइ छट्ठइ लक्खि जियंतहो गलइ चक्खु लोयणइं नियंतहो । सत्तमि कन्नहं सुणिवि न तिप्पइ अट्ठमि मयणग्गिवि न पलिप्पइ । नवमई दंतपंति आहल्लइ खलइ जीह मुहवयणु वियल्लइ । दहमई जइवि न नासइ अंगउ तो जर भंजिवि करइ अयंगर | धत्ता । संखिप्पड़ आउ दियहिं दियहिं कुसरीरु जहिं ।
सुहृवि सुहसंग निव्वु किज्जइ काई तहिं ॥ १२ ॥ अहो नरिंद संसार असारइ तक्खणि दिट्ठपणट्ठवियारइ । पाइवि मणुअजम्मु जणवल्लहु बहुभवकोडिसहासिं दुल्लहु । जो अणुबंधु करइ रहलंपडु तहो परलोए पुणुवि गउ संकडु । जइ लहविओउ नउ दीसइ जइ जोव्वणु जराए न विणासइ । जइ ऊसरइ कयावि न संपय पिम्मविलास होंति जइ सासय । तो मिल्लिव सुवन्नमणिरयणई मुणिवर किं चरंति तवचरणई । एम एउ परियाणिवि बुज्झहि जाणंतोवि तोवि मं मुज्झहि । धत्ता । मुणिवरवयणेहिं सिरिरामालिंगियभुअहो ।
निव्वे सरीरि उपज्जइ घणवइसुअहो' ॥ १३ ॥
अष्टादशः सन्धिः
मुणिवयण सुणेवि नरवइ संक समुव्वहइ | सच्च संसारि जीवतणिय विचित्तगइ | मुणिवयणें परिचत्तपमाएं तं सयलुवि परिपुच्छिउ राएं । अवरुषि धम्माहम्मविसेसणु पुच्छिउ मुणिवरिंदु सुहृदंसणु । पुणु पुच्छिउ नियपुव्वभवंतरु कुडिलसुहासुहकम्मनिरंतरु |
१२७
१ C adds इय भविसत्तकहाए पयडियधम्मत्थकाममोक्खाए बुहधणबालकयाए पंचमिफलवण्णणाए भविसयत्तवेरग्गवणणो णाम अडदहमो संधी परिच्छेओ सम्मत्तो ॥