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अडदहमो सन्धी
१२३ बोल्लाविउ कयविणयविसेसिं तवसि तेण तहो परमाएसिं। पाविउ अग्गिमित्तु सुविडंबहो पलयकालु किउ अम्ह कुडुंबहो । तं निसुणेवि सोवि अणुकंपिउ तसिवि तस्स मिच्छामि पयंपिउ । अहोहो महाणुभाव अणिउत्तउ आएसिउ तं मइंमि अजुत्तउ । अम्हहं एउ न होइ करिव्वउ अजवि पायच्छित्तु चरिव्वउ । आएं आसि एम होइव्वउ अह इत्थु वि न विसाउ करिव्वउ ।
सुहदुक्खई कयधम्माहम्मि मणुअहं होंति पुराइयकम्मि । घत्ता । संसारि असारि जीउ असासउ चलु विहउ।।
तं किजइ मित्त जं पाविजइ परमपउ ॥१॥ पहुपरिहवदुहदुम्मियचित्तिं पियवच्छलवयणामयसित्तिं । पणविवि अन्भत्थिउ अन्नाणिं रंजिउ राउ जेण पई जाणिं । तं उवएसु मइंमि जाणावहि पहुसहुँ परिओसहु आणावहिं । खुल्लउ भणई एउ जइ जाणहिं ता तिहुवणु परिओसहु आणहिं । तिण्णिमि लोय तुलिज्जहिं आएं कवणु गहणु किर इके राएं। तं तहो वयणु तेण परियाणिवि लइ दिक्ख जिणवयणइं जाणिवि । परमागमजुत्तिए विहरंतउ मरिवि सुहम्मसग्गि संपत्तउ । सावि सुकेस जणणि तहोकेरी पहुपरिहवबहुदुक्खजणेरी ।
वासवधरिणि तिवेयहि माइय पुत्तविओयसोयदुहघाइय । घत्ता । जिणवयणु सुणेवि अन्जावय तउ करिवि मुअ।
तियलिंगु हणेवि पढमई सग्गि सुरिंदु हुअ॥२॥ जणणि सुकेस हूअ सूरप्पाहु पुत्तु दुवक्कु जाउ सोमप्पहु । विण्णिवि तहिं सोहम्मि वसेविणु बेसायरहं भोय भुंजेविणु। सो दुवक्कु सोमप्पहु सुरवरु हुउ चएवि मणवेउ मणोहरु । गिरिवेयड्डसिहरि ससिकंतए पुरि आवासतिलइ सियवंतए । विजाहरमरुवेयहो नंदणु एहु सुतउ मणनयणाणंदणु । जणणिहि पुव्वगुणिहिं अग्घाइउ संजमधरु मुणि पुच्छिवि आयउ । सा सुकेस जा जाय रविप्पहु सा होसइ तइ तउ नंदणु सुप्पहु । अच्छइ तउ घरिणिहि गम्भंतरि तहोतणु विजावच्चु परंपरि । तेण एहु दोहलउ न भंजइ तुम्हहं सेव करइ मणु रंजइ ।