________________
भविसयत्तकहा
सुहकर फंसि वयणु पडिवज्जइ मुहि गलिअंसुपवाहिं नज्जइ । नाह बलिक्विड माणुसलोउ जहिं एहउ खलु इट्ठविओउ । कहिं पुरवरहो जाउ नीसारउ कहिं आयउ सो दुक्कलियारउ । कहिं वीसरिय मुद्द सहुं सयणिहिं कहिं गड तुहुं झडत्ति महु वयणिहिं । जिणि एवड्डु दुक्खु विसहाविउ खलदुव्वयणविडंबण पाविउ । एति कालु गमि विणु संगिं दिणुरयणिवि डज्झतिं अंगिं । दोमि देहु पुरउ सुहिसयणहं भरिय कन्न दूसहदुब्वयणहं । निरु लज्जावणिज्जु अविसिउ एहउ मई न कयाइवि दिउ । घत्ता । अह जम्मिवि जाय दुहदुम्मणविच्छायछवि ।
मई जेहिय नारि दुक्खहं भायण कावि नवि ॥ ११ ॥ तो फेडिवि वयणहो वत्थंचल मुहि तंबोलु खित्तु बहुपरिमलु । फुसिवि अंसु लोयणई सहत्थें जंपिउ पिउ वयणें सुपसत्थें । हे सुंदरि मं जाहि विसायहो सव्वहो मणुअजम्मि संजायहो । सुहिसंजोउ विओएं भज्जर मिहुणुवि सुहकम्में उप्पज्जइ । रिद्धिविणासिं समउं पवज्जइ अत्थक्कइ मरणुवि संपजइ । जोव्वणु जररक्खसिए गिलिज्जइ तं लाहउ जं जणि जीविज्जइ । पिए चिंतविउ केण इउ एहउ जं होसइ दंसणु ससणेहउ । हउं जक्वेसरेण सम्माणिउं निययविमाणि करेविणु आणिउं । एवहिं तउ परिपुन्नमणोरह एयारसमइ हूअ महागह । चिरु विच्छकालि मुह दूसह निसुणहिं कहहि सयल पुग्वक्वह । तं निणिवि उवसमियविलक्खिम हुअ पच्चक्खदक्ख उवलक्खिम । धत्ता | अणुराइयचित्त विउलभोय भुंजंति थिय ।
धणवालि लोइ कव्वसमुच्चइ संधि किये ॥ १२ ॥ एकादश: सन्धिः
८२
कुवलयसोमालहिं कंचणमालहिं उक्खंभिउ अहिमाणगिरि । निसुहं वणिउत्तिं पणयनिउत्ति जिम परिओसिय कमलसिरि । दुवई । पुणरवि भविसयत्तु सकलत्तउ पहुभोवालराइणो ।
१ C adds इय भविसत्तकहाए पयडियधम्मत्थकाममोक्खाए बुहधणवालकयाए पंचमिफलवण्णणाए भविसदत्तभविसाणख्वपियमेलादवण्णणो णाम एयारहमो संधी परिच्छेओ सम्मत्तो ।
I