________________
७७
एयारहमो सन्धी एवहिं महु सम्माणिं जुज्जइ निक्कउ पुरपरिवाडिए किज्जा। जइवि तुम्ह पहुसत्तिए छन्नइ तोवि सुंदर जं पुरु पडिवजइ । तउ सम्माणु जइवि मइं पाविउ पुरु अवराहि जइवि संभाविउ । तोवि मझु मणु एउ न माणई नउ सोहइ विणु पउरहो आणइं । न लहमि सुद्धि देहजणिगारिय विमुहिं पउरि जणणिं बंधारिय । हसइ नरिंदु पलंबियसाडहं सुहियउ होइ पवंचु किराडहं ।
न चवहिं किंपिअणुज्जुअवित्तिहिं न चलहिं एउवि इक्कु विणु नित्तिहिं । घत्ता । सुणिवडनिओइ इहपरलोयविसुद्धमइ । धणवालवि होवि न करहिं खणुवि पमायमई ॥ १८॥
- दशमः सन्धिः ।
सई चरहिं लएवि नरनाहिं पउरहो समउं । तं निसुणहु जेम सम्माणिउ धणवइतणउं ॥ पहुपसायपडिवन्ननिरंतर सलहइ जाम नरिंदु महानरु । इत्थंतरि वरपुरिस पधाईय पद्दणि चारु चरिवि संपाइय। पुच्छिय कहहु केम को अच्छइ पिसुणहं काई कासु को पिच्छइ । काई कासु दुच्चरिउ समप्पइ घरि पच्छन्नु काई को जंपइ । दुव्वावारु काई को माणइ अइसयवंतु काई को जाणहं । तं निसुणेवि कोवि चरु बोल्लिउ पट्टणु सयलु देव आहल्लिउ । घरि घरि नियकम्मई परिचत्तई घरि घरि अंसुजलोल्लियनित्तई। नयरु सबालविड थिउ सियहरि अच्छइ मिलिउ थाणि सिरियाहरि । कयविक्कय सरोस विभाडिय आवणि आवणि मुद्द भमाडिय । कियई देवमंदिरई अपुज्जई जायई पुरवंदिणई अणुज्जई। जंपइ सयलु लोउ इक्वम्मुहु हाहाकार करइ वंकइ मुहु। भणिवि निविडु एक्कचउ किजइ विणु धणवइ न नयरि निवसिज्जइ ।
जइ अवराहु खमिङ नहु राएं तो नीसरहं समउ संघाएं। घत्ता । तं वयणु सुणेवि आएसिउ करणाहिवइ ।।
१Cadds इय भविसत्तकहाए पयडियधम्मत्थकाममोक्खाए बुहधणवालकयाए पंचमिफलवण्णणाए भविसयत्तराजसभापवेसो नाम दसमो सन्धी परिच्छेओ। २ B पराइय