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भविसयत्तकहाए
मुहि मणिचूडहो कंकणजुयलउ सोहिउ अद्धहारि वच्छयलउ ।
एमाहरणु लेवि सविसेसिं थिय नंदणहो नियडि परिओसिं । घत्ता। पिक्खविणु ताहि अंगई मयणुकोवणई।
रइलडरसाइं थिउ विणिवारिवि लोयणइं ॥ १७॥ नजइ पुणुवि ताहि सुहियंतरु अजवि एउ कज्जु दुत्तरतरु । वरतियविहउ जइवि अम्हारउ तो वच्चइ पवंचु वड्डारउ । एवहिं एउ पउरु दरिसेविणु लेव्वउ रायंगणि पइसेविणु । जाहि ताहिं दरिसहि सुहिसंगउ सहुं दुजणहं चविजहि चंगउ । इह लइ नायमुद्द दिहिगारी ताहि समप्पहि पाणपियारी । तो संचल्लि करिवि दिहि देहहो गय मल्हंति महासइ गेहहो । नायरजणमण संखोहंती थियमंथरचिरलील वहंती। दिव्वाहरणविहूसियदेही किं सा होइ न होइ व जेही । विज्जुलकंतिसमुज्जलदित्ती निययजायववसायसइत्ती ।
आयल्लउ जणंति पइपरियणि झत्ति पइट सवत्तिहिं पंगणि । घत्ता । तरलावियनित्त सारभूअ वरजुवइजणि ।
पिक्खेविणु पत्ति धणवइ विभिउ निययमणि ॥ १८ ॥ कंतिहिं तणिय कंति पिक्खंतहो माणु मरठ गलिउ वरइत्तहो । चिरविलसियइं विचित्तपयारई सुमरिवि नेहनिरंतरसारई। पिक्खिवि तहिं लावन्नु विसेसिं खुहिय सवत्ति समुज्जलवेसिं। उवलक्खिउ चित्तंतरि भतिए आयउ भविसयत्तु विणु अंतिए । एहाहरणसोह सिंगारहो दीसइ कुरुजंगलिवि न अन्नहो । अन्नुवि वयणु सुटु सुपसत्थउ मंछुड्ड सोवि जाउ सकलत्तउ। एउ चिंतंतिहिं माणु कलंकिउ तं पिक्खिवि परिवार वि आसंकिउ ।
पुणु धणवइहिं वयणु अवलोइउ पुणुवि सवत्तिहिं समुहं पलोइउ । घत्ता । मणि संक पइट मइलिउ चित्तु सदुल्ललिउ।
हुअ सामलछाय दाइयजणहो गव्वु गलिउ ॥ १९॥ दिन्नु सरुवई उचु वरासणु किउ धणवइण कुडिलसंभासणु । जइवि सवत्ति समिड न रुच्चइ तो निरु नीसंदेहु न मुच्चइ । कमलई न किउ वयणु अवलेविं पहउ कडक्खु पक्खु विक्खेविं । वुत्तु सरुव विवज्जियसंकउ दरिसहिं कुलवहुयहिं मुहपंकउ ।