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पञ्चमो सन्धी। अन्नवि नरनरिंद मई भक्खिय केणवि नियमजाय न रक्खिय । एहु अउव्वु कोवि महु भावइ अन्नु वि नियलोयणहं सुहावइ । इउ चिंतंतु जाउ जाईसरु भवपच्चइण सरिउ जम्मतरु।। नामग्गहणु विहंगिं जाणिउं पियपेसलवयणहिं सम्माणि । अहो भविसत्त काइं एकल्लउ कुसलु सरीरि तुज्झु थिउ भल्लउ । तावसु पुत्वजम्मि हउं होतउ कोसिउ नामि नयरि वसंत।
वजोअरखलेण अवमाणिउं पई वच्छलवयणिहिं सम्माणिउं । घत्ता । तहो पडिउवयारु एहु मित्त मई तुज्झ किउ ।
धणकणयसमिडु पुरु सहुं कन्नई अल्लविउ ॥ १९॥ जो तहिं आसि मंति वज्जोयरु अरिपुरनयराहिवहं मणोहरु । चिरु हडं आसि जेण अवहत्थिउ अन्नहो सेव कराविउ पत्थिउ । पहु पुरु पउरु मज्झु अणुराइउ भंजिवि जेण दियंबरि लाइउ । सव्वि हडं नयरिं अवगण्णिउं पई परि किंपि किंपि अणुमण्णिउं । तं मुउ तेण कसाएं तत्तउ मरिवि घोरु असुरत्तणु पत्तउ।। मरिवि घोरु असुरत्तणु पत्तउ एत्थु वि तिलयदीवि हुउ राणउ ।
मइंमि तासु पडिवइरु समारिउ सनयरु सपरिवार संघारिउ । घत्ता । वइरई न कुहंति कालिं कहिम्मि जणंति भउ ।
अह दुग्गइ निति असमाणियइं न जति खउ ॥ २०॥ तिं वयणिं परिओसियगत्तई बिन्निवि तक्खणि हुअइं सइत्तई । भविसमहानरेण तो वुच्चइ जइ तुम्हहमि मणहो इउ रुच्चइ। जइ सच्चउ उवसमिउ तमालहो तो तं करहु जुत्तु जं कालहो । तं पडिवण्णु वयणु अवियारिं मायामंडउ किउ वित्थारिं । पूरिय रंगावलिजलकलसहिं छडतोरणतरुपल्लवकलसहिं । दरिसिउ सजणजणु दिहिगारउ वत्थाहरणसोहसियसारउ । वड्डिउ नंदिसहु चउपासहि अहिहवसिरिमंगलविन्नासिहिं । सा भविसाणुरूअ सुहिलोएं अहिसिंचिय मंगलजलतोएं। परिहाविय सेयंबरवत्थई पाणिग्गहणि जाई सुपसत्थई । उम्मालिय मुत्ताहलदामिहिं मालइकुंदविमीसियधामिहिं। दसण चिहुर कररुह निष्फंकिय मणहर हरियंदण चचंकिय । १B सोवि २ B लिंति ३ B जणंति