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पर अब भी वेद फिर-फिर जन्म ले रहा है। इसकी फिक्र नहीं कर रहा है, वेद दोहरा रहा है। यह पांच-छह हजार या दस हजार वर्ष पुरानी बुद्धि है इसके पासा इनको दस हजार साल में चेतना आई कि अरे! कुछ ऋषि हो गये। ये दस हजार साल पीछे चल रहे हैं समय से। इनके बीच और समय में दस हजार साल का फासला है। ये मुझे भी सुनेंगे दस हजार साल बादा तब ये उठाकर देखेंगे कि अरे! कुछ हो गया, हमें पता ही न चला।
मंदबुद्धि का अर्थ होता है, जो पीछे-पीछे घिसटता है समय के। उपस्थित होना चाहिए समय के साथ तो प्रतिभा; और जो समय के भी थोड़ा आगे होता है तो बुद्धत्व।
इन तीनों बातों को समझ लो। मंदबुद्धि समय से पीछे घिसट रहा है। यह तो कुछ कर ही नहीं सकता। यह जो भी करेगा, चूक जायेगा। इसका तीर कभी निशाने पर नहीं लगेगा, लग ही नहीं सकता। इसका तीर कहीं चलता है, निशाना कहीं और है। इनमें कभी तालमेल नहीं होता।
फिर जो समय के साथ खड़ा है ठीक शुद्ध वर्तमान में, वह प्रतिभावान। इसकी संभावना ज्यादा है। इसका तीर लग जायेगा। इसका तीर और निशाना एक ही दिशा में है।
फिर ऐसा भी चैतन्य का आखिरी चरण है जो समय के आगे है। इसलिए बुद्धपुरुषों की वाणी हमेशा समय के आगे होती है। तुम्हें उन्हें समझने में हजारों वर्ष लग जाते हैं। उसका कुल कारण इतना है कि वे जो कहते हैं वह उनके सामने जो लोग मौजूद हैं, उनसे बहुत आगे की बात होती है। हजारों वर्ष पहले जैसे कोई बात कह दी गई। लोग अभी तैयार ही न थे।
बुद्धत्व का अर्थ है. जो होनेवाला है उसे देख लेना।
समझो इसको। किसी ने गाली दी, बुद्ध वह है जो अभी न पकड़ पायेगा। जब उसे कोई कहेगा, अरे, इस आदमी ने गाली दी, क्या बैठे सुन रहे हो? तब उसे अकल आयेगी। बुद्धिमान वह है जो अभी पकडेगा। अभी दी, यहीं पकड़ेगा। जो कुछ करना उचित होगा, अभी कर लेगा।
बुद्ध वह है कि गाली दी भी नहीं गई और पकड़ ली। उठ ही रही थी कि पकड़ ली। यह तो बाहर की बात।
भीतर की भी बात-तुम्हें किसी ने गाली दी, दफ्तर में गाली दी, घर आकर क्रोधित हुए इतनी देर लग गई तुम्हें संवेदित होने में। जब तुम क्रोधित हो गये तब भी तुम्हें पता नहीं चलता| जब तुमने अपने बेटे की पिटाई ही कर दी तब तुमको खयाल आया कि अरे, तुम किसको मार रहे हो! तुम्हें मारना किसी और को था, यह बेटे को मार रहे हो। यह क्रोध गलत जगह आरोपित हो गया। तुम्हें क्रोध का भी पता तब चलता है जब कृत्य बन जाता है।
क्रोध की तीन अवस्थायें हैं। एक तो क्रोध के आने की पहली अवस्था; जैसे सूरज अभी उगा नहीं, प्राची सिर्फ लाल हुई उगने के करीब है -ब्रह्ममुहूर्त ऐसा क्रोध का ब्रह्ममुहूर्त अभी क्रोध हुआ नहीं, होगा; होने ही वाला है। फिर सूरज निकल आया, क्रोध हो गया। फिर सूरज सिर पर चढ़ आया, क्रोध कृत्य बन गया; जलाने लगा, झुलसाने लगा।
तो एक तो क्रोध है, कृत्य बन जाता है तभी लोगों को पता चलता है, वे मंदबुद्धि। जब तुमने