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और यह बात सच है कि इलेक्ट्रान दिखाई नहीं पड़ते। इतने सूक्ष्म हैं, ऊर्जा मात्र हैं। दिखाई नहीं पड़ते। लेकिन कोई इस पर शक नहीं उठाता। कोई बड़ा समझदार होने का दावा करनेवाला आदमी यह नहीं कहता कि यह तो नया अंधविश्वास हो गया। पहले के लोग ईश्वर नाम देते थे, तुम इलेक्ट्रान कहने लगे। फर्क क्या पड़ता है? इससे क्या फर्क पड़ता है? नाम बदल दिये लेकिन धारणा तो वही की वही है कि चीज हो और दिखाई न पड़े, और फिर भी तुम मानते हो।
सोचो, अगर पुराने लोग अंधविश्वासी थे तो तुम अन्यथा नहीं हो सकते। तुम अपने बाप को गालियां देकर प्रशंसित न हो सकोगे, क्योंकि तुम वहीं से आते। गंगा गंगोत्री को गाली देकर गंगा न हो सकेगी। गंगोत्री अगर भ्रष्ट है तो गंगा भ्रष्ट है। क्योंकि जहां से हम आते... स्रोत अगर भ्रष्ट हो गया तो हम भ्रष्ट हो गये।
कौन कहता है कि तुम सब कुछ नहीं जानते हो मगर दो-चार बातें प्राचीनों को भी मालूम थीं
इतनी तो दया करो, इतना स्वीकार करो कि कुछ वे भी जानते थे। उस कुछ को बचा लेना है। मसलन, वे जानते थे कि पावन पुष्प एकांत में खिलता है।
समस्त पुराने शास्त्र स्वात की महिमा गाते हैं। तुम भीड़ में जी रहे हो। तुम भीड़ की तरह जी रहे हो। तुम्हें खयाल ही भूल गया है कि पावन पुष्प एकांत में खिलता है। तुम भीड़ के हिस्से हो गये हो। भीड़ तुम्हारे बाहर, भीड़ तुम्हारे भीतर, भीड़ ही भीड़ है। तुम्हारे भीतर व्यक्ति तो बिलकुल खो गया है। व्यक्ति तो ध्यान में खिलता है। ध्यान यानी स्वात। व्यक्ति तो अकेले में, परम एकाकीपन में उभरता है, संबंधों में नहीं। संबंधों से मुक्त हो जाने का नाम संन्यास है। संबंधों के पार हो जाने का नाम संन्यास है।
तमने जाना कि मैं बाप हं.तमने जाना कि मैं पति हं.तमने जाना कि मैं पत्नी हं,मैं बेटा ह? मैं यह, मैं वह, तो तुम गृहस्थ। घर में रहने से तुम गृहस्थ नहीं होते, इस बात को जानने से कि मैं बाप हूं? बेटा हूं? पति हूं? पत्नी हूं? तुम गृहस्थ होते हो। तुम घर में रहे लेकिन तुमने जाना कि मैं कैसे बाप, मैं कैसे बेटा, मैं कैसे पत्नी! मुझे तो अभी यही पता नहीं कि मैं कौन हूं। अभी तो मुझे अपने भीतर झांककर देखना है कि यह कौन है मेरे भीतर जो बैठा है? और जब तुम इसे देखने लगोगे, पहचानने लगोगे, तुम अचानक पाओगे असंबंधित हो तुम असंग हो तुम। तब संन्यास जन्मा।
मसलन, वे जानते थे कि पावन पुष्प एकांत में खिलता है और सबसे बड़ा सुख उसे मिलता है जो न तो किस्मत से नाराज है न भाग्य से रुष्ट है समझो, यही तो तथाता का सिद्धांत है, साक्षी का सिद्धांत है। जो न तो किस्मत से नाराज है