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निश्चित ही, सभी कुछ लीला का अंग है। अब थोडा सोचना पड़े
कहते हैं, एक सूफी फकीर को हृदय में एक घाव हो गया था और उसमें कीडे पड़ गये। और जब वह नमाज पढ़ने झुकता था तो कीडे गिर जाते। उसने नमाज पढ़नी बंद कर दी। और लोगों ने उससे कहा कि क्या अब आखिरी वक्त, मरते वक्त नास्तिक हो गये? धर्म छोड़ रहे? जिंदगी भर नमाज पढ़ी, मस्जिद आये, अब तुम आते क्यों नहीं? उसने कहा, कैसे आऊं 2: जब झुकता हूं तो ये कीड़े गिर जाते हैं। इन कीड़ों का भी जीवन है।
एक तरफ से देखने पर यह नासूर है और आदमी दुखी है। दूसरी तरफ से देखने पर यह आदमी नासूर के कीड़ों के लिए जीवन है। कीड़े बड़े सुखी हैं।
तुम सोचते हो कि तुम जब वृक्षों से फल तोडते हो तो वृक्ष बहुत प्रसन्न होते हैं तुम उनके लिए रोग हो। आदमी को आते देखकर वृक्ष कहते हैं, यह आया रोग। जैसे कीड़े तुम्हारे ऊपर पलते हैं और तुम परेशान होते हो, वैसे ही तो तुम वृक्षों पर पल रहे हो-पैरासाइट! शोषक! तुम पूरी प्रकृति को नष्ट कर रहे हो। पहाड़ खोदकर मिटा रहे हो, झीलें भर रहे हो, अब तुम चांद-तारों पर भी जाने लगे, वहां भी तुम उपद्रव पहुंचाओगे यह आदमी नाम की बीमारी बढ़ती चली जाती है। तुमने कितने पशु मार डाले! तुम कहते हो अपने जीवन के लिए, अपने भोजन के लिए। जो तुम्हारा भोजन है वह पशु का तो भोजन नहीं हो रहा, वह तो कोई बड़ा प्रसन्न नहीं हो रहा है। वह तो मर रहा है।
अब यह बड़े मजे की बात है, तुम अगर जंगल जाओ और किसी शेर को मार लो तो लोग फूलमाला पहनाते हैं कि गजब बहादुर आदमी! शेर को मारकर चला आ रहा है। राजासाहब ने शेर मारा। और शेर राजासाहब को मार ले तो कोई फूल नहीं पहनाता शेर को कि गजब! कि शेर ने राजासाहब मारा। मगर शेर पहनाते होंगे कि गजब! ठीक किया। एक दुश्मन मिटाया, एक सफाई की। तुम एक ही तरफ से देखते हो-आदमी के पहलू से, तो अड़चन होती है।
मैंने सुना है, एक आदमी के खून में दो क्षयरोग के कीटाणु चौराहे पर मिले खून की धारा में दौड़ते -दौड़ते। नमस्कार इत्यादि होने के बाद एक ने कहा, लेकिन तुम्हारा चेहरा बड़ा उदास है और पीले -पीले मालूम पड़ते हो। बात क्या है, पेनिसिलिन लग गई क्या?
क्षयरोग के कीड़ों को पेनिसिलिन बीमारी है। तुम यह मत समझना कि औषधि है! तुम्हारे लिए होगी। यह जीवन विराट है! इस जीवन को सब पहलुओं से देखो। अपने को आदमी के पहलू से मुक्त करो। क्योंकि वह सिर्फ एक कोण है, वह सिर्फ एक दृष्टिकोण है।
लीला का अर्थ होता है, तुम जीवन को समस्त दृष्टिकोणों से देखो। तब यहां कुछ भी गलत नहीं है। तब सब हो रहा है। एक विराट खेल है। कोई हारता, कोई जीतता। जीत होगी कैसे बिना हार के? तुम कहते हो, क्या हार भी खेल का हिस्सा है? तो ऐसा कोई खेल बना सकते हो जिसमें जीत ही जीत हो, हार हो ही नहीं। तो खेल कैसे होगा।
तुम कहते हो, दुख भी क्या जीत का हिस्सा है? क्या दुख के बिना सुख हो सकता है? क्या असफलता के बिना सफलता हो सकती है? क्या मृत्यु के बिना जीवन हो सकता है? क्या बुढापे के