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शब्दों, शास्त्रों, सिद्धांतों में नहीं, स्वयं में।
अभी तो तुम जिनके पीछे भाग रहे हो, ये पंडित हैं। ज्ञानी वही है जो तुम्हें तुम्हारे ही भीतर पहुंचने का मार्ग बता दो पंडित तुम्हें ऐसे मार्ग बताते हैं कि चले जाओ काशी, कि चले जाओ काबा, कि गिरनार, कि जेरुसलेम, वहां मिल जायेगा।
लाख चले जाओ काशी, नहीं मिलेगा। काशी में जो रह रहे हैं उनको नहीं मिला तो तुम्हें क्या मिलेगा? भीतर जाओ। सदगुरु का अर्थ है, जो तुम्हें तुम्हारे भीतर पहुंचा वे
और तब तुम पाओगे कि जैसे -जैसे तुम भीतर जाने लगे, तुम तो भीतर जाते हो, परमात्मा पास आता है। तुम जितने भीतर जाते हो उतना परमात्मा पास आता है। एक दिन तुम अपने केंद्र पर खड़े हो जाते हो, उसकी वर्षा हो जाती है।
जलते -जलते फट गया हिया घरती का पर सावन जब आया अपनी मर्जी से आया बादल जब बरसा अपनी मर्जी से बरसा नभ ने जब गाया तब अपनी मर्जी से गाया इच्छा का ही चल रहा रहट हर पनघट पर पर सबकी प्यास नहीं बुझती है इस तट पर तू क्यों आवाज लगाता है हर ग्यारी को? आनेवाला तो बिना बुलाये आता है।
परमात्मा भीतर छिपा है और राह देखता है। तुम जरा बुलाना तो बंद करो। तुम हर गगरी को चिल्लाये जा रहे हो। तुम हर तरह के पानी से प्यास बुझाने को उत्सुक हो चातक बनो। चकोर बनो। स्वाति की प्रतीक्षा करो। हर जल से काम नहीं होगा। और हर गगरी तृप्त न कर पायेगी। और प्रतीक्षा करो उस महत क्षण की। क्योंकि तुम्हारी मर्जी से कुछ होनेवाला नहीं है।
तुम दूकान चलाते, तुम धन कमाते, तुम पद पर जाते, इसी तरह तुम सोचते हो एक दिन परमात्मा को भी पकड़ लें। तुम्हारी मर्जी से कुछ होने वाला नहीं। तुम्हारी मर्जी से ही तो सब उपद्रव मचा हुआ है। तुम मर्जी छोड़ो।
जलते-जलते फट गया हिया घरती का पर सावन जब आया अपनी मर्जी से आया
तो प्रतीक्षा सीखो। भागदौड़ छोड़ो, बैठो, प्रतीक्षा करो। जो प्रतीक्षा करने में कुशल हो जाता वह परमात्मा को पा लेता। प्रतीक्षा में ही आ जाता है।
बादल जब बरसा अपनी मर्जी से बरसा नभ ने जब गाया अपनी मर्जी से गाया इच्छा का ही चल रहा रहट हर पनघट पर और तुम अपनी इच्छा के रहट को ही चलाये जा रहे हो। की के चरखे के जैसे घुमाये चले