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मुझे विरोध नहीं दिखाई पड़ता। दोनों परिपूरक हैं।
बिदको नहीं गुरूर में मुस्कुराओ नहीं कौन कहता है कि तुम सब कुछ नहीं जानते हो मगर दो -चार बातें प्राचीनों को भी मालूम थीं मसलन, वे जानते थे कि पावन पुष्प एकांत में खिलता है और सबसे बड़ा सुख उसे मिलता है जो न तो किस्मत से नाराज है न भाग्य से रुष्ट है जिसकी जरूरतें थोड़ी और ईमान बड़ा है संक्षेप में जो अपने आप से संतुष्ट है
तो नाराज मत होओ। हर सदी इस अहंकार में जीती है कि जो हमें पता है वह किसी को पता नहीं था। हर पीढ़ी इस अस्मिता की घोषणा करती है कि जो हमने जान लिया है, बस वह हमने जाना है, और किसी ने नहीं जाना। हमसे पहले तो सब मूढ़ थे।
देखो, क्रांतिकारी कहता है, हमसे पहले जो थे वे सब मूढ़ थे| परंपरावादी कहता है, हमसे बाद जो होंगे वे सब मूढ़ होंगे। ये दोनों बातें मूढ़ता की हैं। परंपरावादी कहता है, पीछे देखो अगर ज्ञान खोजना है। तो शान हो चुका। सतयुग हो चुका| स्वर्णयुग बीत चुका। अब आगे तो बस अंधेरा है-और अंधेरा, कलियुग और अंधकार, और नरक। अब आगे तो मूढ़ से मूढ़ लोग होंगे। रोज-रोज प्रतिभा कम होगी। रोज-रोज पाप बढ़ेगा। परंपरावादी कहता है पीछे जा चुके स्वर्ण शिखर| लौटो पीछे, देखो पीछे।
और क्रांतिवादी कहता है, पीछे क्या रखा है? अंधकार के युग थे वे। तमस घिरा था। लोग मूढ़ थे, अंधविश्वासी थे। वहां क्या धरा है! आगे देखो। स्वर्णकलश भविष्य में है। प्रतिभा रोज-रोज पैदा होगी। ज्ञानी आनेवाले हैं, अभी आये नहीं। उनका आगमन हमारे साथ शुरू हुआ है। क्रांतिकारी कहता है, हमारे साथ ज्ञानियो का आगमन शुरू हुआ है। यह पहला पदार्पण है किरण का। अब और किरणें आयेंगी, बच्चों में आयेंगी, भविष्य में आयेंगी।
ये दोनों बातें अधूरी हैं। ये दोनों बातें गलत हैं। अधूरे सत्य झठ से भी बदतर होते हैं। बिदको नहीं गुरूर में मुस्कुराओ नहीं कौन कहता है कि तुम सब कुछ नहीं जानते हो मगर दो-चार बातें प्राचीनों को भी मालूम थीं
इतनी दया करो। इतना तो स्वीकार करो कि दो-चार बातें प्राचीनों को भी मालूम थीं। और अगर उन्हें मालूम न होती तो तुम्हें भी मालूम नहीं हो सकती थी क्योंकि तुम उन्हीं से आते हो।