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लो उस बात को तो नथने फड़फड़ाने लगते हैं, हाथ-पैर गरम हो जाते हैं। मरने -मारने की जिद आ जाती है।
___ बीस साल पहले किसी ने गाली दी थी। एक हवा का झोंका आया और कब का गया, लेकिन तुम उसे पकड़े बैठे हो। एक स्मृति को पकड़े बैठे हो। तुम घाव को भरने नहीं देते। तुम घाव को कुरेदते रहते हो ताकि घाव हरा बना रहे।
लोग बड़े दुखवादी हैं। जो मनुष्य इस जगत में आनंदित होना चाहे उसे कोई रोक नहीं सकता। और अगर तुम दुखी हो तो तुम्हारे कारण दुखी हो। कोई तुम्हें दुखी कर नहीं रहा।
यह जो.. जिस ढंग से हम जी रहे हैं, इस जीने में कहीं बुनियादी भूल हो रही है। अंधेरा बहुत बड़ा है-मन का अंधेरा, विचार का अंधेरा। और जरा-सी समझ है। बड़ी छोटी समझ है। जरा चोट पड़ती है कि समझ बिखर जाती, अंधेरा पूरा हो जाता। जरा चोट पड़ी कि तुम्हारी समझदारी बड़े से बड़ा समझदार आदमी जरा-सी चोट में विचलित हो जाता है और समाप्त हो जाता है।
आंगन भर धूप में मुट्ठी भर छांव की क्या बिसात, हो न हो!
अंतर की पीर कसे, अधरों पर हास हंसे उलझन के झुरमुट में किरनों के हिरन फंसे शहरों की भीड़ में नन्हे -से गांव की क्या बिसात, हो न हो!
ढहते प्रण हाथ गहे, तट ने आघात सहे भावी के सुख-सपने लहरों के साथ बहे तूफानी ज्वार में कागदीया नाव की क्या बिसात, हो न हो!
भेदभरे राज खुले, सुख-दुख जब मिले-जुले बांवरिया दृष्टि धुली, आंसू के तुहिन घुले कालजयी राह पर
क्षणजीवी पांव की क्या बिसात, हो न हो! हमारी समझ बड़ी क्षणजीवी है। हमारे पैर बड़े कमजोर। हमारी बुद्धि तो ऐसी है जैसे बड़े गहन अंधकार में जरा-सी रोशनी है। बस जरा झिलमिलाती रोशनी है-अब मरी, तब मरी।
ढहते प्रण हाथ गहे, तट ने आघात सहे भावी के सुख-सपने लहरों के साथ बहे