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वह साधारण धर्म है। यह असाधारण धर्म है। यह धर्म की आत्यतिक घोषणा है। तुम चोरी भी छोड़ो, तुम दान भी छोड़ो, तुम कर्ता होना छोड़ो । न तुम पापी बनो, न पुण्यात्मा । तुम कर्ता न रहो, तुम साक्षी हो जाओ।
अब तुम समझना। अगर कोई पापी पुण्यात्मा बनना चाहे तो बड़ी कठिनाई है। पहले तो पाप इतनी आसानी से छूटता नहीं, इतनी आसानी से कोई आदत नहीं जाती । जन्मों-जन्मों में बनाय है, लाख -लाख उपाय करो, नहीं जाती । तुम जरा सोचो, छोटी-मोटी आदतें नहीं छूटती । किसी आदमी को पान चबाने की आदत है, वहो नहीं छूटती और क्या तुम खाक छोड़ोगे! किसी को तमाखू.... ।
एक सज्जन मेरे पास आते थे, बंगाली सज्जन । यूइनवर्सिटी मे प्रोफेसर थे। वह मुझसे पूछते कि यह पाप कैसे छूटे, वह पाप कैसे ? उटे, और जब भी वह आते तो 'नास' अपनी नाक में भरते रहते। बैठे रहते, थोड़ी- थोड़ी देर में 'नास'! मैंने उनसे कहा कि पाप इत्यादि को तो छोड़ो, पहले तुम यह 'नास' तो छोड़ो। उन्होंने कहा, यह न छूटेगी। यह बहुत मुक्Sएकल है, इसके बिना तो मैं जी ही नहीं सकता। मैंने कहा, मैं जी रहा हूं, सारी दुनिया जी रही है इसके बिना। तुम 'नास' कै बिना न जी सकोगे! उन्होंने कहा, नहीं जी सकता। इससे ही तो 'मुझे ताकत बनी रहती है, नहीं तो सब ढीला - डाला हो जाता है, सब सुस्त हो जाता है। ले ली इटकर 'नास आ गयी अच्छी छींक, ताजे हां गये। तो जीवन में ताजगो मालूम पड़ती है। यह नहीं छूटेगी, यह तो बात ही मत उठाना। मैंने कहा कि अगर यह नहीं छूटना, तो क्या छूटना है ! आदतें नहीं छूटती साधारण, तो जन्मों-जन्मों को आदतें कैसे छूटेगी ? पाप नहीं छूट सकता।
और अगर कोई पापी किसी तरह पाप को छोड़ने का उपाय भी करे, तो पाप पीछे के दरवाजों से प्रवेश कर जाता है। ऐसा भी हो सकता है कि तुम चलो दान करें, पुण्य करें, मगर तुम पुण्य करोगे कहां से? तुम और चोरी करने लगोगे |
देखते नहीं रोज ? जो दान देते हैं वह दान देते ही तब हैं, जब वह दस हजार देते हैं अगर वह दस लाख का इंतजाम कर लेते हैं, तब दस हजार देते हैं। देते ही तब हैं जब निकालने का इंतजाम हो जाता है। जब वह देख लेते हैं कि कोई हर्जा नही, सौदा करने जैसा है। तो अभी चुनाव आ रहा है तो वह पार्टियों को दान देंगे। देश के हित में दान देते हैं। कोई लोकतंत्र के हित में दान देगा, कोई समाजवाद के हित में दान देगा। सच तो यह है कि जो होशियार हैं वे दोनों को दान देंगे। समाजवादियों को भी और लोकतंत्रियों को भी, क्योंकि पता नहीं कौन आ जाए ! होशियार तो दोनों नाव पर सवार रहता है। कि इंदिरा हों कि मोरारजी, दोनों को दान देगा। जो आ जाए।
मेरे एक मित्र हैं, ज्योतिषी हैं। ज्योतिष उनका चलता-करता नहीं। आदमी भले हैं ओर झूठ भी नहीं बोल पाते हैं, इसलिए। ज्योतिष तो धंधा ही झूठ का है। उसमें अगर सच इत्यादि बोले तो वह चलेगा ही नहीं। वह तो झूठ का ही मामला है। वह तो सारा काम ही पूरा बेईमानी का है। तो वह मुझसे कहने लगे कि क्या करूं, कुछ सर्टिफिकेट भी नहीं है मेरे पास कि किसी तो मैंने कहा, तुम एक काम करो। राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा था। मैंने कहा, तुम चले जाओ और दो आदमी खड़े