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इसलिए मान लेते हैं कि औरों को भी हुआ होगा या होता होगा। मगर भरोसा आ नहीं सकता। कैसे आएगा? जिस आदमी ने मधु का स्वाद नहीं लिया, लाख लोग कहते रहें कि बहुत मीठा है, बड़ा स्वादिष्ट है उसे कैसे भरोसा आएगा? और जो आदमी मधु को लेने गया था और उल्टा, मधु तो मिला नहीं मधुमक्खियों ने चीथ डाला, उसको तुम भरोसा दिलवाओगे कि मधु बड़ा मीठा है? वह कहेगा, क्षमा करौ, अब और न उलझाओ, एक दफा झंझट में पड़ गया तो सारा शरीर सूज गया था, दिनों तक घर बिस्तर में पड़ा रहा, मुझे तो एक ही अनुभव आता है कि बड़ा कड़वा है| मधु का स्वाद तो मधुमक्खी के डंक का स्वाद ही उसे मालूम होगा।
लाख कोई तुमसे कहे कि मुझे परमात्मा का दर्शन हो रहा है, तुम कहोगे, हमें तो कंकड़-पत्थर वृक्ष इत्यादि दिखायी पड़ते हैं, परमात्मा दिखायी नहीं पड़ता। तुम्हें वही दिखायी पड़ेगा जितना तुम देख सकते हो। दूसरे की तो चिंता ही मत करो। अपनी चिंता करो, तुम्हें हुआ या नहीं? शायद बात कुछ और है, तुम कह कुछ और रहे हो। तुम्हारे भीतर यह बात खल रही है कि मुझे हुआ नहीं अगर यह पक्का हो जाए कि किसी को भी नहीं हुआ तो निश्चितता हो। कि कोई हम ही अकेले नहीं खो रहे हैं, सभी खो रहे हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन के घर में आग लग गयी। सारा पडोस जल गया। मैंने उससे पूछा कि नसरुद्दीन बड़ा बुरा हुआ। उसने कहा, कुछ खास बुरा नहीं हुआ मैंने कहा, मामला क्या है? उसने कहा, अपना क्या जला, पड़ोसियों का देखो! अपने पास था ही क्या? झोपड़ा था, जल गया। पड़ोसियों के महल जल गये! आज ही तो मजा आया कि अपने पास झोपड़ा था, अच्छा हुआ| सदा तो यह पीड़ा रहती थी कि इनके पास महल है और अपने पास झोपड़ा है, आज सुख मिला कि अपने पास झोपड़ा और इनके पास महल! जला तब पता चला, कि बड़ा मजा आया! प्रभु की बड़ी कृपा है।
आदमी दूसरे से सोचता है। तुम्हें पता चल जाए कि किसी को नहीं हो रहा है, तुम निश्चित हो गये। रोज तुम अखबार पढ लेते हो, देखते हो कितनी जगह डाके पड़े, कितने लोग मारे गये, कितना युद्ध हुआ कितनी चोरियां हुईं कितने लोग बेईमानी कर रहे हैं, कितने लोग पत्नियों को ले भागे किसी की, तुम कहते हो-हम ही भले। करते हैं थोड़ा-बहुत, मगर इतना थोड़े ही! चित्त में बड़ी शांति मिलती है, सांत्वना होती है।
तुम कह तो यह रहे हो कि पता चल जाए कि दूसरों को हुआ तो आस्था आए भरोसा आए। नहीं, तुम यह जानना चाहते हो कि किसी को न हुआ हो, कहीं भूल-चूक से किसी को हो न गया हो। किसी को भी नहीं हुआ है तो निश्चित होकर फिर चादर ओढ़ कर सो जाएं कि कोई हम ही नहीं भटक रहे हैं, सारी दुनिया भटक रही है। कुछ अड़चन नहीं है।
तुम अगर मुझसे पूछते हो तो मैं कहता हूं कि सबको हो गया है सबको था ही-और सबसे मेरा मतलब यह नहीं है कि जो यहां हैं -कहीं भी जो हैं। परमात्मा सबको मिली हुई संपदा है। तुम पहचानो या न पहचानो, तुम उपयोग करो न उपयोग करो, तुम पर निर्भर है। तुम्हारे भीतर हीरा पड़ा है, टटोलो, न टटोलो-बहुत जन्मों तक न टटोला तो शायद भूल भी जाओ मगर इससे भी कुछ फर्क