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और अब तो अष्टावक्र की महागीता पूरी होने आ रही, यहां कितने लोगों को ज्ञान हुआ?
एक बात पक्की है कि जिसने पूछा, उसको नहीं हुआ। और उसे होना मुश्किल है, क्योंकि उसकी नजर दूसरों पर लगी है। अगर तुम मुझसे पूछते हो कि कितनों को ज्ञान हुआ अगर तुम मेरी तरफ से पूछते हो, तो मैं तो यही कहूंगा कि यहां कोई अज्ञानी है ही नहीं कभी कोई अज्ञानी हुआ ही नहीं यही तो अष्टावक्र का मूल संदेश है। अज्ञानी तुमने माना है, तुम हो नहीं। तो ज्ञानी होने की चेष्टा में ही तुम्हारा अज्ञान ही बचा रहता है। ज्ञानी होने की चेष्टा नहीं करनी है, सिर्फ यह सत्य जानना है कि ज्ञान तुम्हारा स्वभाव है, चैतन्य तुम्हारा स्वभाव है। तुम ज्ञानी हो। अज्ञानी होने का न कोई उपाय है न कोई विधि है। अज्ञानी होना संभव नहीं है, लाख उपाय करो तो भी तुम अज्ञानी नहीं हो सकते। तुम्हारे भीतर ज्ञान का अंगारा दग्ध जलता ही रहता है। कितनी ही राख में ढंक जाए, बुझता नहीं। और राख में रखा क्या है? एक फूंक मारो कि उड़ जाए। श्रवणमात्रेण।।
सदगुरु का इतना ही तो काम है कि एक फूंक मारे तुम्हारी राख हट जाए। लेकिन अगर तुमने जिद ही कर रखी हो कि तुम अंगारे को स्वीकार ही न करोगे, तो तुम्हारी मर्जी! तुम्हारी मर्जी के खिलाफ तुम्हें कोई जगा नहीं सकता। और तुम जागना चाहो तो गहरी से गहरी नींद से भी तुम जाग सकते हो। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि नींद में भी तुम निर्णय लेते हो कि कब जागना और कब नहीं जागना। तुम चकित होओगे यह बात जानकर, नींद में भी तुम्हारा निर्णय काम करता है। देखा तुमने, एक मां उसका छोटा बच्चा उसके पास सोया हो, छोटे बच्चे की सांस में जरा घरघराहट हो जाए, जरा-सी उसकी नींद खुल जाती है। और आकाश में बादल गड़गड़ाते रहें और उसकी नींद नहीं खुलती। मामला क्या है? शायद क्या सुनना और क्या नहीं सुनना इसकी भी नींद में व्यवस्था है। तुम इसका भीतर निर्णय कर रहे हो क्या सुनना, क्या नहीं सुनना।
___ यहां इतने लोग बैठे हो, तुम सब यहां सो जाओ आज रात और कोई आकर जोर से पुकारे
! राम कहां है? तो सब सोए रहेंगे, किसी को सुनायी न पड़ेगा, लेकिन जिसका नाम राम है उसे सुनायी पड़ जाएगा। वह कहेगा, कौन भाई आधी रात जगाने आ गया?
सब सोए थे, किसी को सुनायी नहीं पड़ना चाहिए या सभी को सुनायी पड़ना चाहिए लेकिन राम को सुनायी पड़ गया। राम ने निर्णय रखा है अपने भीतर कि अगर कोई 'राम' नाम ले, यह मेरा नाम है, तो मैं सुनूंगा। किसी और का नाम ले तो मैं नहीं सुनूंगा। किसी के और के नाम सं मुझे क्या लेना-देना! नींद में भी कोई निर्णय कर रहा है कि जाग या न जाग? जागने योग्य बात है, या जागने योग्य बात नहीं है?
तो तुम्हारे निर्णय के खिलाफ तो तुम्हें कोई भी नहीं जगा सकता। तुम अगर मन में तो चाहते हो कि सुबह पांच बजे उठना नहीं है, बड़ी सर्दी है, लेकिन पत्नी पीछे पड़ी है कि चलना है मंदिर, जल्दी चलना है, तो तुम अलार्म भर देते हो बेमन से- भरते वक्त भी तुम जानते हो कि उठने की इच्छा तो नहीं है-तुम सुबह अलार्म सुनोगे नहीं। अलार्म बजेगा, तुम सुनोगे कि मंदिर में घंटियां बज रही हैं और तुम मंदिर में पहुंच गये सपना देखोगे। तुम अलार्म की घंटी को मंदिर की घंटी बना लोगे