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दिनांक 10 फरवरी, 1977; ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क,
पूना ।
जनमउवाच:
अनुभव ही भरोसा- प्रवचन - सौहलवां
क्व प्रमाता प्रमाणं वा क्व प्रमेय क्व च प्रमा।
क्व न किंचित क्वा न किंचिद्वा सर्वदा विमलस्य मे।। 292।।
क्व विक्षेपः क्व चैकाग्रयं क्व निर्बोध क्व मूढुता ।
क्व हर्षः क्व विषादो वा सर्वदा निस्कियस्थ मे ।। 29311
क्व चैष व्यवहारो वा क्व च सा परमार्थता ।
क्व सूखं क्व च वा दुःखं निर्विमर्शस्थ मे सदा ।। 29411 क्व माया क्व न संसारः क्व प्रीतिर्विरति क्व च वा । क्व जीवः क्व च तद्ब्रह्म सर्वदा विमलस्य मे।। 29511 क्व प्रवृत्तिर्निवृत्तिर्वा क्व मुक्तिः क्व व बंधनम् । कूटस्थनिर्विभागस्थ स्वस्थस्थ मम सर्वदा ।। 29611 क्योयदेश: क्व वा शास्त्र क्व शिष्यः क्व व वा गठ। क्व चास्ति पुरुषार्थो वा निरुपाधे शिवस्थ मे 11 29711 क्व चास्ति क्व च वा नास्ति क्यास्ति चैकं क्व व द्वयम् ।
बहु नात्र किमक्तेन किंचिन्नोतिष्ठते मम।। 29811
वही है मरकजे –काबा
वही है राहे - बुतखाना?
जहां दीवाने दो मिलकर
सनम की बात करते हैं
अष्टावक्र और जनक, दो दीवानों की बात हमने सुनी । उनकी चर्चा ने एक अपूर्व तीर्थ का निर्माण किया। उसमें हमने बहुत डुबकियां लगायीं। अगर धुल गये, अगर स्वच्छ हो गये, तो सारा गुण गंगा का है। अगर न धुले, अस्वच्छ के अस्वच्छ रह गये, तो सारा दोष अपना है। अगर ऐसे सुना जैसे