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को भिखारी मान लिया है। न मालूम किस पागलपन में तुम भीख मांगे चले जा रहे हो। छोड़ो इस सपने को, थोडे जागो और सिद्ध का अर्थ तुम्हें पता चलेगा। सिद्ध का अर्थ है, ऐसी चैतन्य की दशा जहां अब पाने को कुछ भी न रहा। जो पाना था, पा लिया। जो होना था, हो लिये। तृप्ति की ऐसी परमदशा जहां तृष्णा तो है ही नहीं, तृप्ति भी नहीं है।
हरि ओं तत्सत्!
आज इतना ही।