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आंसू तक सब रेहन हो गये अर्थी तक नीलाम हो गयी मैंने तो सोचा था अपनी सारी उमर तुझे दे दूंगा इतनी दूर मगर थी मंजिल चलते -चलते शाम हो गयी
यहां तो सब लुट जाएगा।
आंसू तक सब रेहन हो गये
अर्थी तक नीलाम हो गयी
यहां तो सब चुक जाएगा। यहां तो सब छूट जाएगा। अर्थी तक नीलाम हो गयी
यहां तो कुछ बचेगा नहीं। इसलिए मैं तुम्हें सांत्वना नहीं देता । मैं तुम्हें झकझोरना चाहता हूं। मैं तो तुम्हारी सांत्वनाएं छीन लेना चाहता हूं। मैं तो तुमसे कहता हूं, मौत निश्चित है। मौत होनेवाली है। मौत कल होगी। आने वाले क्षण में हो सकती है। बचो मत, स्वीकार करो। और जितनी देर क्षण बचे हैं, इनको तुम जीवन की तलाश में लगा दो। अंतस - जीवन की तलाश में वहा है किरण अमृत की, शाश्वत की। और वह तुम्हारी किरण है। मिल सकती, तुम उसके मालिक हो। तुमने दावा नहीं किया है दावा करो! घोषणा करो। शरीर से अपने को थोड़ा हटाओ, चैतन्य में थोड़े जयों ।
हरि ओम तत्सत्। आज इतना ही।