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इसका कमजोर है। दूरदृष्टि नहीं है और गणित भी कमजोर है-मकान पूरा भरा भी नहीं है। पहले का गणित मजबूत है, गुण का कोई बोध नहीं है। इसे गुण का बोध है, गणित कमजोर है और दूरदृष्टि बिलकुल नहीं है। यह खतरनाक है, इसको भविष्य का पता नहीं रहेगा। यह राज्य को खतरे में डाल सकता है।
वे तीसरे बेटे के पास गये। राजा तो थोड़ा चिंतित होने लगा कि अगर ऐसा मामला हुआ तीनों बैटे कहीं अयोग्य सिद्ध कर दिये इस फकीर ने तो फिर मैं क्या करूंगा! तीसरे बेटे के महल में जाकर राजा तो खड़ा हो गया, उसकी तो समझ में न आया, महल पूरा खाली था, उसने कहा, यह क्या मामला है? तुमने प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया? बेटे ने कहा, मैंने भाग लिया, जरा गौर से देखें। बोला कि मैं देख लिया हूं, राजा, तुम्हारी समझ में न आएगा। इसने महल भर दिया-रोशनी से भर दिया है। एक-एक कोने –कातर में रोशनी है। कोई जगह खाली नहीं है। महल तो भर ही दिया है, महल के बाहर तक रोशनी पहुंच रही है। बगीचा भी भरा है, राह भी भरी है। इस बेटे के पास गणित भी है, गुणबोध भी है, भविष्य-दृष्टि भी है। इसने पहले से कुछ नहीं किया। अभी हम आए-अभी हम आ ही रहे थे रास्ते पर कि तब इसने दीये जलवा दिये। इसके पास समय की भी समझ है।
हजारों दीये जलाए थे उसने-हजार रुपये में खूब दीये जल गये थे। और घी के जलाए थे। दीये तो बहुत थे, लेकिन रोशनी एक थी। और उस फकीर ने कहा, इस बेटे में थोड़ा अदवैत का बोध भी है। इतने दीये, लेकिन रोशनी एक। इसने एक से ही भर दिया है पूरे महल को। यह बेटा योग्य है। काम है दो शरीरों का मिलना। और अंत में कचरा ही सिद्ध होता है, दुर्गंध पैदा होती है। काम से कब सुगंध उठी! काम से विषाद होता है। पश्चात्ताप होता है। काम आज नहीं कल सड़ांध देने लगता है।
प्रेम काम से बेहतर है। थोड़े फूल हैं प्रेम में, कूड़ा-कचरा नहीं है। लेकिन मन के फूल कितनी देर जीएंगे? मन स्वयं क्षणभंगुर है। मन कोई टिकने वाला तो नहीं। शाश्वत और नित्य से मन का कोई संबंध नहीं है। तो आज फूल, कल मुरझा जाते हैं।
तुमने देखा, पश्चिम में जहां लोग प्रेम को बहुत मूल्य देते हैं पूरब से ज्यादा मूल्य देते हैं-वहां बड़ी अड़चन है। विवाह मुरझा मुरझा जाता है। तलाक हो -हो जाते हैं। पूरब में लोग विवाह को मूल्य देते हैं, प्रेम को मूल्य नहीं देते, तो विवाह स्थायी होता है। विवाह पहले तल पर है, वह दो शरीरों का मिलन है। न तो पुरुष से पूछा जाता है, न स्त्री ने पूछा जाता है, मां-बाप तय करते हैं। पंडित, पुरोहित, ज्योतिषी तय करते हैं। धन-पैसा है या नहीं, कुलीन परिवार है या नहीं, स्वास्थ्य ठीक है या नहीं, पढ़ाई-लिखाई ठीक हुई या नहीं, प्रतिष्ठा कैसी है, दुकान कैसी चलती है, सब बातें सोचकर तय करते हैं। प्रेम भर के बाबत नहीं सोचते। ग्रह-नक्षत्र भी सोचते हैं -बड़ी दूर की सोचते हैं, पास की बिलकुल नहीं सोचते। प्रेम के संबंध में कोई मामला, बात ही नहीं उठाते कि इस लड़के को लड़की से प्रेम है? लड़के को लड़की से कि लड़की को लड़के से, किसी से प्रेम है? प्रेम की बात ही नहीं उठाते। क्योंकि पूरब एक बात समझ गया, प्रेम का मामला बड़ा खतरनाक है। क्योंकि फिर विवाह थिर नहीं हो पाता।