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बन अकिंचन पांवड़े पलकें बिछाए कान अपना ध्यान आहट पर लगाए पुलकमय हर अंग होने को समर्पण आप मनभावन करो पावन वचन-मन
जैसे ही तुम थोड़े-से प्रेम की सीढ़ियां उतरे, प्रेम का पाठ पढ़े, ढाई आखर प्रेम का पढ़े, थोड़े से प्रेम में रसलीन हुए, थोड़े-थोड़े प्रार्थनापूर्ण कदमों से अस्तित्व की तरफ बढ़े, थोड़े प्रार्थनापूर्ण हृदय से अस्तित्व के मंदिर की सांकल खटखटायी, तो तुम पाओगे कि अब तक तुमने जो नहीं पाया था और बहुत द्वार खटखटाए थे वह मिलने लगा।
यह संसार प्रेम को सीखने का ही एक विदयालय है। यहां तुम और कुछ भी सीख लो, काम न आएगा। अगर तुमने प्रेम सीख लिया तो बस।
प्रेम से मेरा क्या अर्थ है? प्रेम के तीन रूप समझने चाहिए। एक तो प्रेम का रूप है, काम। काम प्रेम का निम्नतम रूप है। देह से देह की आकांक्षा। शरीर से शरीर का मिलन। है तो मिलन, मगर अत्यंत स्थूल का स्थूल से। पदार्थ का पदार्थ से। इसमें कोई बहुत विराट नहीं घट सकता| फिर प्रेम का दूसरा रूप है, जिसे हम प्रेम कहते हैं। मन से मन का मिलन। ऊपर थोड़ा हुआ| विचार की तरंगों का जिससे मेल खा जाए। तुम्हारी अनुभूति और जिसकी अनुभूति साथ-साथ, संग-संग चलने लगे। दो व्यक्तियों का हृदय साथ-साथ धड़कने लगे। देहें दो हों, हृदय एक हो जाए, तो प्रेम। वह भी अभी अंतिम रूप नहीं है। अंतिम रूप को मैं नाम देता प्रार्थना। वह है आत्मा का आत्मा से मिलन। शरीर से शरीर-काम, मन से मन-प्रेम, आत्मा से आत्मा-प्रार्थना।
___काम के तल पर शोषण चलता। तुम दूसरे का शोषण करते, दूसरा तुम्हारा शोषण करता है। काम के तल पर तुम दूसरे का उपयोग साधन की तरह करते। प्रेम के तल पर तुम दूसरे के लिए साधन बन जाते। काम के तल पर तुम दूसरे का उपयोग साधन की तरह करते हो। पति पत्नी का उपयोग कर रहा है एक साधन की तरह। बेटा बाप का उपयोग कर रहा है एक साधन की तरह। तुम्हारे हित में है, इसलिए तुम प्रेम करते हो। प्रेम जैसे रिश्वत है, शोषण की व्यवस्था है। मन के तल पर तुम साधन बन जाते। तुम जिससे प्रेम करते, म उसके लिए साधन बन जाते, वह साध्य बन जाता। आत्मा के तल पर न तुम साधन रह जाते, न दूसरा साधन रह जाता। दूरी ही मिट जाती, कौन साधन, कौन साध्य! निश्चित रूप से एक हो जाते।
ऐसा समझो कि दो दीयों को हम करीब रख दें, तो काम। दोनों दीयों के तेल को मिला दें, तो प्रेम। और दोनों दीयों की ज्योति, प्रकाश एक-दूसरे में लीन हो जाए, तो प्रार्थना। दो दीया को कितना ही पास रखो, दूरी रहेगी। सटाकर रख दो फिर भी दूरी रहेगी। उससे एकात्म नहीं हो सकता। लेकिन तुमने देखा, दो दीयों का प्रकाश टकराता भी नहीं- अगर तुम एक कमरे में दो दीये जला दो, तो खटरपटर भी नहीं होती। तुम दो दीयों का तेल एक-दूसरे में मिलाओगे तो थोड़ी आवाज होगी, थोड़ा शोरगुल मचेगा। लेकिन दो दीयों का प्रकाश जब एक-दूसरे में लीन हो जाता है तो कुछ पता नहीं चलता।