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आज एक मर गया, कल दूसरा मर गया, क्यू में खड़े हैं, क्यू छोटा होता जाता, हम आगे सरकते जाते, रोज मौत करीब आती जाती। जिंदा हैं, तो मरने का भय। मर गये, तो फिर जीवन की आकांक्षा। ऐसा यह द्वंद्व का चक्कर है। इसको इस देश के लोगों ने संसार-चक्र कहा है। संसार-चक्र का अर्थ
है, जो है उससे विपरीत पकड़े रहता है। तुम जो है उसे देखने लगो, तो धीरे - धीरे वह भी छूटेगा, विपरीत भी छूट जाता है।
_अब दुबारा जब तुम्हें सुख का क्षण आए, हिम्मत करना-बड़ी हिम्मत की जरूरत है। सुख के क्षण में जागने के लिए बड़ी हिम्मत की जरूरत है। क्योंकि सुख के क्षण में तो आदमी सोना चाहता है। सुख के क्षण में तो सोचता है, बमुश्किल से तो सुख मिला और अब यहां साक्षी बनकर और नष्ट करना! किसी तरह मिला, भोग लो। पुरानी आदत, पुराना संस्कार तादात्म्य कर लेने का फिर तुम्हें पकड़ेगा, हिम्मत रखना।
रक्खा है किसी की आस रहने ही में क्या रक्खा है किसी के पास रहने ही में क्या
आदत-सी पड़ गयी है शायद वरना रक्खा है 'फिराक' उदास रहने ही में क्या
एक आदत, एक संस्कार, अन्यथा रक्खा क्या है उदास रहने में! और रक्खा क्या है प्रफुल्ल होने में! न उदासी में कुछ है, न प्रफुल्लता में कुछ है। दोनों ही स्थिति में तम अपने को और दोनों ही स्थिति में तुम रिक्त होते, चुकते। हर घड़ी, चाहे सुख हो चाहे दुख, एक ही चीज पाने योग्य है और वह है साक्षीभाव। जागो और देखो। जोड़ो मत अपने को। अगर तुमने बाहर की चीजों से अपने को न जोड़ा, तो तुम भीतर के जगत में जुड़ जाओगे, उसी का नाम योग है। बाहर से जोड़ा, भीतर से टूट जाओगे, उसी का नाम विरह है। अपने से टूट गये, विरह; अपने से जुड़ गये, योग।
दूसरा प्रश्न :
परमात्मा की परिभाषा क्या है? परमात्मा की प्रतिमा कैसी है?
परिभाषा जिसकी हो सके, वह परमात्मा नहीं। इसे तुम परमात्मा की परिभाषा समझो। जिसकी परिभाषा हो सके, डेफिनिशन हो सके, वह परमात्मा नहीं। क्योंकि परिभाषा का अर्थ ही होता है, जिसके चारों तरफ हमने रेखा खींच दी। तो परिभाषा सीमित की हो सकती है, परिभाषा असीम की नहीं हो सकती। तो जो भी हम कहेंगे, छोटा होगा। जो भी हम कहेंगे, झूठ होगा।
इसलिए लाओत्सु ने कहा है, सत्य के संबंध में कुछ कहा कि सत्य असत्य हो जाता है। कहते