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'नित्य अपनी महिमा में स्थित हुए मुझको वहां भूत है, कहा भविष्य है और कहां वर्तमान भी है?' अब तुम थोड़ा सोचना, साधारणत: कहा जाता है, वर्तमान में जीओ। मैं भी तुमसे कहता हूं कि वर्तमान में जीओ। –क्योंकि इससे पार की बात तो तुम्हारी अभी समझ में न आ सकेगी। कृष्णमूर्ति भी तुमसे कहते हैं, वर्तमान में जीओ। लेकिन वर्तमान में कैसे जीओगे? भविष्य है, काफी बड़ा है, अभी हुआ नहीं है मगर विस्तार है भविष्य का। अगर हाथ-पैर मारना चाहो तो मार सकते हो, थोड़ा जी सकते हो।
इसीलिए तो लोग भविष्य में जीते हैं, वर्तमान में नहीं जीते। क्योंकि थोड़ी सुविधा तो चाहिए चलने -फिरने की। या अतीत में जीते हैं, क्योंकि अतीत भी लंबा है। जो हो गया, उसकी भी धारा है। वर्तमान में कैसे जीओ, यह तो एक क्षण आया और गया। लेकिन कहते हैं तुमसे हम वर्तमान में जीने को, क्योंकि यह पहला कदम है नित्य में उतरने का। वर्तमान के क्षण में नित्य और समय का मिलन होता है। जर-सी देर को नित्यता समय में झांकती है, उतनी देर को समय सत्य हो जाता
इसको ठीक से समझना।
समय तो झूठ है। एक झूठ भविष्य, दूसरा झूठ अतीत। और दोनों के बीच में जो थोड़ा-सा सच मालूम होता है, वह भी समय के कारण सच नहीं है, वह नित्य उसमें झलक मारता है। वर्तमान का अर्थ हुआ जहां समय और शाश्वत का थोड़ी देर को मिलन होता है। शाश्वत के प्रकाश में वर्तमान का क्षण चमक उठता है, एक क्षण को, फिर भागा, गया। इस शाश्वतता में उतरने के लिए वर्तमान में जीने की बात कही जाती है, लेकिन वह सिर्फ कामचलाऊ है। जब तुम उतरने लगोगे वर्तमान में तो तुम बहुत जल्दी पा जाओगे कि वर्तमान में उतरने का असली मतलब यह है कि वर्तमान के भी पार उतर जाना, समय के पार उतर जाना। न रह जाए अतीत, न भविष्य, न वर्तमान। यह काल की धारा न रह जाए। इसके पीछे छिपा है अ-काल।
वह जो पीछे छिपा है इस धारा के और जिसकी रोशनी के कारण, जिसकी पुलक के कारण जिसके प्राण के कारण थोड़ी देर को वर्तमान जीवित हो जाता है, उस जीवंत में उतर जाना, उसका नाम है नित्य, इटर्निटी।।
अब ऐसा समझो कि ये मेरी तीन अंगुलियां तुम्हारे सामने हैं। एक का नाम भविष्य, एक का नाम वर्तमान, एक का नाम अतीत। लेकिन तीन अंगुलियों के बीच में तुम्हें दो खाली जगह भी दिखायी पड़ रही हैं। वर्तमान, अतीत, भविष्य, इनके बीच में जो दो खाली जगह हैं, उन्हीं खाली जगहों में उतरकर नित्यता का अनुभव होता है। समय के दो क्षण के बीच में जो अ- क्षण होता है, जो नो मोमेंट होता
वही नित्यता का है। एक क्षण गया, दूसरा आ रहा है, इन दोनों के बीच में जो थोड़ा-सा अंतराल है, इंटरवल है, रिक्त जगह है, शून्य है, उसी में शाश्वत का निवास है।
'नित्य अपनी महिमा में स्थित हुए मुझको कहां भूत कहां भविष्य, कहां वर्तमान और कहां देश?' आइंस्टीन ने तो अभी इस सदी में जाकर यह पता लगाया कि समय और देश एक ही घटना