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वह जो आपने सत्य की निदर्शना की, वह जो तत्त्व का इशारा किया, वह तो ससी बन गयी, उसने तो मेरे भीतर से सब खींच लिया जहर, उसने तो सब काटे निकाल लिये।
यह बात खयाल रखना कि दो शब्दों का उपयोग करते हैं जनक-हृदयोदरात्। हृदय और पेट से। उदर और हृदय से। यह बात बड़ी महत्वपूर्ण है। यह पांच हजार साल पुरानी बात है। अब कहीं जाकर पश्चिम में मनोविज्ञान इस बात को समझ पा रहा है कि मनुष्य जो भी दमन करता है, विचारों का, वासनाओं का, वृत्तियों का, वह सब दमित वृत्तियां पेट में इकट्ठी हो जाती हैं। यह तो अभी नवीनतम खोज है, इधर पिछले बीस वर्षों में हुई है। लेकिन यह सूत्र पांच हजार साल पुराना है। उदर? तुम भी थोड़े चौंके होओगे कि अगर कहते कि मेरे मस्तिष्क से सारे विचार निकाल लिये हैं, तो बात ज्यादा तर्कसंगत मालूम पड़ती। लेकिन कहते हैं जनक, मेरे उदर से, मेरे पेट से। यह बात ही जरा बेहूदी लगती है कि पेट से! पेट में क्या विचार रखे हैं? लेकिन आधुनिक मनोविज्ञान भी इससे सहमत है। अंग्रेजी में तो जो शब्दावली है, लोग कहते हैं न कि इस बात को पेट में न ले सकूगा, 'आइ विल नाट बी एबल टू स्टमक इट।' इसको उदरस्थ न कर सकूँगा।
यह बात महत्वपूर्ण है। हम जो भी दबाते हैं वह पेट में चला जाता है। इसीलिए चिंतित आदमी के पेट मैं अल्सर हो जाते हैं। चिंता के वाण अल्सर बन जाते हैं। सिर में नहीं होते अल्सर, मस्तिष्क में नहीं होते अल्सर, तुमने देखा? होने चाहिए मस्तिष्क में लेकिन होते पेट में। कृपण आदमी कब्जियत से भर जाता है। वह जो कंजूसी है, वह पेट में उतर जाती है। कंजूस आदमी और कब्जियत का शिकार न हो, बडा मुश्किल है। क्योंकि वह जो हर चीज को कंजूसी से देखने की आदत है, वह धीरे- धीरे उदरस्थ हो जाती है। फिर पेट मल को भी पकड़ने लगता है, उसको भी छोड़ता नहीं। सब चीजें पकड़नी हैं तो मल को भी पकड़ना है।
हमारे चित्त के जितने रोग हैं, सब अंततः गिरते जाते हैं, पेट में इकट्ठे होते जाते हैं। असल में पेट ही एकमात्र खाली जगह है जहां चीजें इकट्ठी हो सकती हैं। इसलिए उदर जनक कहते हैं। कि जितने - जितने उपद्रव मैंने अपने पेट में इकट्ठे कर रखे थे, आपके तत्वविज्ञान की संसी से खींच ही लिये आपने। खींचने को कुछ बचा नहीं है। मेरा पेट हल्का हो गया है। मेरा पेट निर्भार हो गया है। एक बात।
दूसरी बात कही कि और हृदय से। मस्तिष्क की तो बात ही नहीं उठायी है। इसका कारण है। तीन तल हैं हमारे जीवन के। एक है शरीर का तल, एक मन का तल और एक है आत्मा का तल। पूर्वीय अनुसंधानकर्ताओं ने अनुभव किया कि शरीर के तल पर जो भी दबाया जाता वह पेट में चला जाता है। चित्त के तल पर, मन के तल पर जो भी दबाया जाता है, वह हृदय में अवरुद्ध हो जाता है। और आत्मा के तल पर तो दमन हो ही नहीं सकता। और आत्मा का स्थान है मस्तिष्क के अंतस्तल
हस्रार। तो यह तीन स्थान हैं। पेट में शरीर का जोड़ है। हृदय में मन का जोड़ है। और सहस्रार में आत्मा का जोड़ है।
अगर शरीर और मन की गांठ खुल जाए, कुछ भी दबा हुआ न रह जाए, तो जो ऊर्जा पेट