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होगा। यह समाधि से भी ज्यादा सुंदर शब्द है। इसका अर्थ है, जो बाहर खड़ा है। जो किसी भी चीज में कभी भीतर नहीं है। तुम जहां उसे पाओ, सदा बाहर पाओगे। वह हर चीज के बाहर हो जाता है। कोई चीज उसे बांध नहीं पाती। और कोई चीज उसकी सीमा नहीं बन पाती। और कोई चीज उसकी परिभाषा नहीं है।
'मुक्तपुरुष सब स्थिति में स्वस्थ है किये हुए और करने योग्य कर्म में संतोषवान है सर्वत्र समान है, और तृष्णा के अभाव में किये और अनकिये कर्म को स्मरण नहीं करता है । '
मुक्तो यथास्थितिस्वस्थ कृतकर्तव्यनिर्वृतः ।
समः सर्वत्र वैतृष्णयाव्र स्मरत्यकृतं कृतम् ।।
मुक्तो यथास्थितिस्वस्थ .......।
जैसी स्थिति है, जो है, जैसा है, वैसा ही प्रसन्न है । रत्ती भर अन्यथा की मांग नहीं है। और किसी तरह हो, ऐसा कोई विचार ही नहीं है। जहां विचार उठा अन्यथा का, वहीं वासना जगी, तृष्णा उठी, चिंता उठी, फिर तुम भटके।
यथास्थिति स्वस्थः ।
अमीरी तो अमीरी, गरीबी तो गरीबी । महल तो महल, झोपड़ा तो झोपड़ा । सुख तो सुख, दुख तो दुख । सम्मान तो सम्मान, अपमान तो अपमान । जैसा है।
द्वार पर भिक्षा मांगने गया । द्वार खोला । वह परिवार बुद्ध
एक बौद्ध कथा है। एक बौद्ध भिक्षु रोज भिक्षा मांगने आता वैशाली में, राजधानी में। एक घर जो बड़े अभिजात्य का घर था, बड़े कुलीन परिवार का घर था, उसके द्वार पर दस्तक दी, अति सुंदर हीरे-जवाहरातों से लदी एक स्त्री ने का विरोधी था। तो वह स्त्री नाराज हो गयी, उसने कहा, दुबारा कभी यहां मत आना । भिक्षु ने कहा, तो भिक्षापात्र खाली जाए तो वह क्रोध में आ गयी, तो उसने उठाकर एक कचरे की टोकरी उसके भिक्षापात्र में और भिक्षु के ऊपर फेंक दी। सारा कचरा उसके ऊपर गिर गया, भिक्षापात्र कचरे से भर गया। जैसा बुद्ध की आज्ञा थी कि जब कोई तुम्हें कुछ भी भेंट दे तो धन्यवाद देकर आगे बढ़ जाना । तो उसने झुककर धन्यवाद दिया ।
राहगीर एक खड़ा यह सब देख रहा था। उसने भिक्षु से पूछा कि यह क्या पागलपन है? तुम किस बात के लिए सिर झुकाए, और किस बात के लिए धन्यवाद दिया? तो भिक्षु ने कहा, उसने कुछ तो दिया। कम-से-कम देना तो आया। कचरा सही, मगर उठाना कचरे की टोकरी को, डालना, इतना श्रम किया। धन्यवाद! कुछ तो दिया। अपमान सही, मगर देने की कृपा तो की।
यथास्थितिस्वस्थः ।
जो हो, उसमें स्वस्थ, प्रसन्न। ऐसे व्यक्ति के जीवन में अशांति कैसे होगी? और फिर ऐसे व्यक्ति को जो किया, नहीं किया, जो हुआ, नहीं हुआ, उसकी याद नहीं आती, जो होना चाहिए, जो करना चाहिए, उसकी योजना नहीं बनती; न कोई अतीत, न कोई भविष्य, ऐसा व्यक्ति वर्तमान में जीता, तथाता में। यह क्षण पर्याप्त है। यह क्षण काफी से ज्यादा है।