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जागरण में तो कैसे भूल होगी? इसलिए यह कबीला इस पृथ्वी का सबसे ज्यादा सभ्य कबीला है। इस कबीले में आज तब कोई हत्या नहीं हुई। न कोई चोरी हुई। न कोई आत्महत्या हुई। और इस कबीले के इतिहास में कोई आदमी कभी पागल नहीं हुआ। और यह कबीला कभी युद्ध में नहीं उतरा। अपूर्व है घटना! आदमी और युद्ध न करे! आदमी और चोरी न करे ! आदमी और हत्या न करे! आदमी और पागल न हो! तो फिर आदमी करेगा क्या? यही तो सारे काम हैं। सौ में निन्यानबे तो यही काम हैं हमारे जीवन के। कुछ थोड़ा-बहुत बच जाता है, उसमें हम और तरह से जीते हैं, अन्यथा यही हमारा जीवन है, लड़ो, मारो।
इस कबीले की सभ्यता बड़ी अनूठी है। और इस कबीले को न तो किसी ने अहिंसा की शिक्षा - न बुद्ध हुए न महावीर हुए न किसी ने सत्य की शिक्षा दी, न किसी ने धर्म सिखाया। यह कबीला कोई बहुत बड़ा धार्मिक कबीला नहीं है, लेकिन इस कबीले के लोग बड़े धार्मिक हैं। फर्क समझ लेना, जब मैं कहता हूं धार्मिक नहीं हैं तो मेरा मतलब न तो पंडित, न पुरोहित, न मंदिर, इस सबकी बहुत चिंता नहीं है। लेकिन एक बड़ी कीमिया पकड़ ली उन्होंने, कुंजी पकड़ ली कि स्वप्न में रूपांतरण करना है। जब स्वप्न बदल जाता है, जब विचार बदल जाते हैं, तो कृत्य बदल जाते हैं। उन्होंने बहुत आधारभूत बात पकड़ ली।
फ्रायड ने इस सदी को यही आधारभूत बात पश्चिम में दी। जब पश्चिम में फ्रायड ने दी तो लोग चकित हुए| मनोविज्ञान इतना ही कर रहा है, मनोविश्लेषण इतना ही कर रहा है, पागल आदमी के सपनों की खोज करता है। और सपनों की खोज से पागल आदमी को सत्य का दर्शन कराता है। जैसे-जैसे पागल आदमी को अपने सपने का बोध स्पष्ट होने लगता है, वैसे-वैसे उसके जीवन- व्यवहार में रूपांतरण हो जाता है। यह बात क्रांतिकारी थी पश्चिम में, लेकिन पूरब में नहीं। पूरब तो सदियों से यह कह रहा है।
यह अष्टावक्र का सूत्र अपूर्व है। अष्टावक्र यह कह रहे हैं कि ऐसी भी गहरी समझ है जहां स्वप्न ही नहीं समझ लिये जाते, सुषुप्ति भी समझ ली जाती है।
सुषुप्ति और गहरी है। पहले जागृति - दिन का व्यवसाय, आचरण, व्यवहार, फिर स्वप्न का व्यवसाय, आचरण, व्यवहार; फिर इसके नीचे सुषुप्ति है, जहां स्वप्न भी नहीं रहा । न बाहर की दुनिया रही न भीतर की दुनिया रही, तुम अपने में बिलकुल बंद हो गये। द्वार - दरवाजे बंद करके तुम बीज की तरह हो गये। कोई अंकुरण न उठा- कोई विचार नहीं, कोई तरंग नहीं। यह सुषुप्तिा और इससे भी एक गहरी दशा है जिसको तुरीय कहा है। जहां तुम इस भीतर की अपूर्व शात, स्वात दशा में जाग्रत हो गये। सोए-सोए जग गये, सोए में जग गये। शरीर सोया रहा, मन सोया रहा और चैतन्य जग गया। इसको चौथी अवस्था कहा ।
पश्चिम का मनोविज्ञान अभी दो में उलझा है- पहले एक में ही, जागृति में उलझा था। फ्रायड अनुदान से स्वप्न में भी लग गया है। अभी - अभी दस वर्षों में सुषुप्ति पर भी खोज शुरू हुई है। अमरीका में दस प्रयोगशालाएं काम कर रही हैं आदमी की नींद की खोज के लिए कि आदमी की नींद