________________
सपने पतझार के सगे सुमनों की हार हो गयी बदशकल बहार हो गयी ऐसे कुछ छाया भ्रम-तम धुंधलाया दिनकर का क्रम ऐसे कुछ बदल गये हम बेमानी अब हर मौसम
मन जब उन्मन बेहाल हो कैसे जीवन निहाल हो सासों का काफिला लुटा क्या अबीर क्या गुलाल हो टेसू के फूल जल रहे आग में पलास ढल रहे ऐसे कुछ आख हुई नम दृष्टि-दृष्टि लगती पुरनम ऐसे कुछ बदल गये हम बेमानी अब हर मौसम
फागुनी धमार क्या करें गूंजता खुमार क्या करें तार-तार अश्रु से कसा तान बेशुमार क्या करें मीडों में भरा क्लेश है केवल अवरोह शेष है ऐसे कुछ राग गये थम मौन हुआ असमय सरगम ऐसे कुछ बदल गये हम
बेमानी अब हर मौसम असली बात है कि तुम्हें दिखलायी पड़ जाए कि जीवन के सब मौसम अर्थहीन, व्यर्थ। तब संन्यास सहज ही घटित होता है। तब उपाय नहीं करना पड़ता। तब झगड़ना नहीं पड़ता, संघर्ष नहीं करना पड़ता। तब समर्पण अनायास आता है। और जो अनायास आ जाए, वही सुंदर है। जो चेष्टा