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हमें दो ।
जिस चीज को तुम ध्यान दोगे वह बलशाली हो जाती है। ध्यान हट जाए, निर्बल हो जाती है, टूट जाती है।
तो मैं तो तुम्हें आत्मविश्लेषण को नहीं कहता। मैं तो आत्मजागरण को कहता हूं। विचारों को ध्यान ही मत दो। अगर तुमने कामवासना को बहुत - बहुत विचार किया, तुम पाओगे कि तुम और कामुक हो गये। तुमने अगर क्रोध पर बहुत विचार किया कि कैसे इससे छुटकरा हो कैसे इससे मुक्ति मिले, क्या उपाय करूं, इसका विश्लेषण करूं, क्या इसकी जड़ है, कहा यह पड़ा है, तुम धीरे- धीरे पाओगे तुम इसी में उलझ गये।
नहीं, तुम्हारा ध्यान इन क्षुद्र बातों में लगाने का नहीं। क्षुद्र को होने दो, तुम अपने ध्यान को विदा कर लो। तुम ध्यान का सेतु तोड़ दो। तुम बहुत जल्दी पाओगे कि मन अपने- आप- थोड़ी देर उधेड़बुन करेगा और फिर पाएगा कि कोई ध्यान नहीं देता, क्या फायदा है।
सांख्य-सूत्रों में अदभुत बात कही है कि यह प्रकृति की नटी तब तक नाचती है जब तक तुम ध्यान देते हो। जब ध्यान देने वाला कोई नहीं, देखनेवाला कोई नहीं रहता तो नर्तकी सोचती है, अब क्या सार! दर्शक जा चुके, अब क्या अर्थ!
एक सभा में एक राजनेता बहुत देर तक बोलता चला गया। धीरे-धीरे लोग हटते गये, उठते गये। आखिर में सिर्फ एक आदमी मुल्ला नसरुद्दीन बैठा रह गया। फिर भी राजनेता ने पीछा न छोड़ा, उसे जो कहना था वह कहता ही रहा। अंत करके उसने नसरुद्दीन को कहा कि धन्यवाद नसरुद्दीन, मैंने तो कभी नहीं सोचा था कि तुम्हारा मुझमें इतना लगाव है, कि तुम और इतने प्रेम से मुझे सुनोगे मैं तुम्हारा आभारी हूं। वर्षों हो गये इस गांव में रहते, मैंने तुम्हारी तरफ कभी ध्यान ही नहीं दिया। एक तुम अकेले बचे और सब चले गये। नसरुद्दीन ने कहा फिजूल की बातों में न पड़ो, मैं आपके बाद का बोलने वाला हूं इसलिए बैठा हूं। अब बैठो और सुनो मुझे। सुननेवाले तो जा चुके मुझे बोलना है। मैं वक्ता को धन्यवाद देने के लिए बोलनेवाला हूं, अब तुम बैठो और सुनो। सुनने को मैं भी यहां बैठा नहीं हूं।
अगर नर्तकी देखे कि सारे दर्शक जा चुके हैं तो नर्तन का क्या अर्थ रह जाएगा! बंद हो जाएगा। यह मन का जो नर्तन चल रहा है, तुम इसके जब तक रसविभोर होकर, उत्सुक होकर, विश्लेषक बने हो, तब तक गड़बड़ है, तब तक जारी रहेगा। तुम मुंह मोड़ लो, तुम पीठ कर लो, तुम मन से विमुख हो जाओ। जो मन से विमुख हुआ, वह आत्मा के सन्मुख हो जाता है। जो मन की तरफ उन्मुख रहा, उसकी पीठ आत्मा की तरफ रहती है। तुम पीठ मन की तरफ करो - मन को कहो कि तुझे जो करना है, कर। तेरे करने, न करने में कुछ फर्क नहीं पड़ता। अप्रासंगिक है तेरा करना, न करना । तू कर तो हमें कुछ प्रयोजन नहीं, तू न कर तो हमें प्रयोजन नहीं। तेरा अच्छा-बुरा सब व्यर्थ है। समग्ररूपेण तू व्यर्थ है। हम पीठ फेरते हैं। इस घड़ी में क्रांति घटती है।