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है जब द्रष्टा और विचार दोनों साथ हों। आपरेशन करोगे किसका? कैसे करोगे? ये दो तो नहीं हैं। एक ही है। तो या तो मन होता है, या साक्षी होता है।
विश्लेषण शब्द बड़ा खतरनाक है। इसका मतलब यह होता है कि तुम हो और मन भी है, दोनों साथ-साथ खड़े हैं। ऐसा कभी हुआ नहीं। यह तो ऐसा हुआ जैसे कि घर में अंधेरा था, बड़ा अंधेरा था और मालिक ने अपने नौकर मुल्ला नसरुद्दीन को कहा कि जरा भीतर जाकर देखकर आ, अंधेरा है या नहीं? उसने कहा मालिक, जरा लालटेन जला लूं! तो उस मालिक ने कहा कि अंधेरे को देखने के लिए लालटेन की क्या जरूरत है? कंजूस आदमी, उसने कहा, नाहक तेल खराब करेगा, देखकर आ! पर उसने कहा, बिना लालटेन के देखूंगा कैसे? लालटेन जला लूं। लालटेन जला ली, नहीं माना, लालटेन जलाकर गया देखने-अब लालटेन जलाकर जाओगे तो अंधेरा कहां मिलेगा !
लौटकर आ गया। बोला, मालिक, अंधेरा बिलकुल नहीं है। मैं बिलकुल देख आया, कोने-कोने में देख आया, लालटेन जलाकर देख आया, चूक हो नहीं सकती।
लालटेन जलाकर देखने जाओगे तो अंधेरा मिल नहीं सकता। इसीलिए तो ध्यानी को विचार कभी मिला नहीं। जब ध्यान हुआ, ज्योति जली, विचार नहीं । विचार तो अंधेरे की तरह हैं। जब न रहा, ज्योति न रही, तब खूब घना अंधेरा है। विचार ही विचार हैं।
तो विश्लेषण में तुम यह मत सोचना कि साक्षी पैदा हो रहा है। विश्लेषण में तो एक विचार दूसरे विचार की टांग खींच रहा है। वह दूसरा विचार भी विचार ही है। विश्लेषण किसका कर रहे हो? विचार ही विचार को कतरनी की तरह काट रहा है। तुम तो मौजूद नहीं हो। तुम मौजूद हो जाओ तो विश्लेषण करने को कुछ बचता ही नहीं ।
पूरब और पश्चिम: का यही फर्क है। पश्चिम में ध्यान के नाम से जो चलता रहा है, वह कंटेफ्लेशन है। चिंतन, मनन । पश्चिम से लोग आते हैं और उनको कहो कि ध्यान करो तो वे कहते हैं, किस पर ध्यान करें? स्वभावतः, ध्यान का मतलब ही उनके लिए होता है-किस पर। कोई विषय चाहिए। उनको यह बात एक कदम से समझने में बड़ी कठिन होती है कि ध्यान का मतलब ही होता है, निर्विषय | किस पर, यह बात ही गलत है। जब तक कुछ मौजूद है तब तक ध्यान नहीं। जब कुछ भी मौजूद नहीं है, शून्याकार वृत्ति, तब ध्यान ।
तो बजाय तुम विचार में उलझने के जागो । मन बडा चालाक है। वह कहता है, चलो, विश्लेषण करें; लेकिन विश्लेषण भी किस चीज का करेगा?
मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने बेटे से कहा, फिल्म देखने मत जाना, बड़ी गंदी फिल्म लगी है। और गया तो ठीक न होगा। अब यह तो उकसावा हो गया। बेटे को खयाल भी नहीं था फिल्म में जाने का, यह बाप ने और उकसावा दे दिया। तो वह पहुंच गया। और जब निकल रहा था बाहर तो है आपको क्या मिला उसको, क्या देखने मिला? मुल्ला नसरुद्दीन भी निकल रहा था बाहर । तो उस बेटे ने कहा, अरे पिताजी, आप !
नसरुद्दीन एक क्षण तो ठिठका, फिर उसने कहा, इसीलिए देखने आया था कि यह बच्चों के