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दिगंबर बात तो बिलकुल ठीक कह रहे हैं कि कभी नहीं बोले, लेकिन बस इसको उन्होंने जड़ता से पकड़ लिया कि कभी नहीं बोले। वे समझे नहीं, उन्हें अष्टावक्र का यह सूत्र समझना चाहिए। इसमें पूरे महावीर के जीवन की व्याख्या है।
बूवन्नपि न च बूते ।
बोलकर भी नहीं बोलता है। नहीं बोलने की बात तो सच है, मगर इसको जड़ता से मत पकड़ लेना कि मौन रहता है। फिर तुम चूक गये। फिर तुम फिर पुरानी दुनिया में वापस आ गये-बोलने का मतलब बोलना और न बोलने का मतलब न बोलना। ऐसी परमदशा में विपरीत मिल जाते हैं। और विपरीत विपरीत नहीं रह जाते। बोलकर भी नहीं बोलता है। और कभी-कभी नहीं बोलकर भी बोलता है। कभी-कभी मौन से भी बोलता है। और कभी-कभी शब्द का उपयोग करके भी मौन रहता है। इस परम मुक्तावस्था में जो जो विपरीत है जगत में, जहां-जहां द्वंद्व है, वह सब समाहित हो जाता है, शात हो जाता है।
'जिसकी सब भावों में शोभन, अशोभन बुद्धि गलित हो गयी है और जो निष्काम है, वही शोभायमान है चाहे वह भिखारी हो या भूपति ।'
भिक्षुर्वा भूपतिर्वापि यो निष्कामः स शोभते ।
भावेगु गलिता यस्य शोभनाशोभना मतिः ।।
न तो अब ऐसी दशा में कुछ शोभन है, और न कुछ अशोभन। न तो कुछ शिष्ट है और न कुछ अशिष्ट है। न शुभ, न अशुभ। न करने योग्य, न ना करने योग्य। गये द्वंद्व, गये द्वैत, गये वे भेद पुराने कि यह बुरा और यह भला, सब गये भेद, अब तो अभेद ही बचा और ध्यान करना, अभेद से जो जन्मे वही शोभायुक्त है। अब यह बड़ी विचारणीय बात है। साधारणतः तुम उसको शोभायुक्त कहते हो जो अशोभन के विपरीत है। तुम कहते हो, कैसा शोभन व्यक्ति है, क्योंकि अशोभन इसमें कुछ भी नहीं। लेकिन जिसमें अशोभन नहीं है, उसके लिए शोभायुक्त बने रहने में चेष्टा करनी पड़ेगी। चेष्टा का अर्थ हुआ, भीतर अभी मौजूद है, अभी दबाना पड़ रहा है।
तुमने देखा, स्त्रियों के सामने पुरुष बात करते हैं तो ज्यादा शोभन ढंग से करते हैं। वे कहते हैं, अभी स्त्रियां मौजूद हैं। स्त्रियों के हटते ही अशोभन शुरू हो जाता है। अशोभन तो भीतर पड़ा है। बेटे के सामने बाप बड़े शोभन ढंग से व्यवहार करता है। अपने मित्रों के साथ तो वैसा शोभन व्यवहार नहीं करता। मित्रों में तो जब तक गाली-गलौज न हो, तब तक मित्रता ही कहां! गाली-गलौज से ही पता चलता है कितनी गहरी मित्रता है।
मुल्ला नसरुद्दीन ने राह पर चलते एक आदमी की पीठ पर जोर से धौल जमायी और कहा, कहो चंदूलाल, कैसे हो? वह आदमी गिर पड़ा एकदम ! उस आदमी ने उठकर कहा कि बड़े मियां, मैं चंदूलाल नहीं हूं! और अगर होऊं भी, तो क्या इस तरह धक्का मारा जाता है ! तो नसरुद्दीन ने कहा कि तुम कौन हो रोकनेवाले, चंदूलाल को मैं कितने ही जोर से धक्का मारूं! तुम बीच में बोलनेवाले कौन हो? अब वह आदमी चंदूलाल है भी नहीं, धक्का भी खा गया, मगर वह उसका मुल्ला नसरुद्दीन