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ऊपर आकाश में उड़ गया। टूट गयी वह ग्रंथि, जहां संभोग और समाधि जुड़ते हैं। ___ 'ऐसा व्यक्ति जिसका रज-तम धुल गया है।'
यह बात भी समझना। रज का अर्थ होता है, कर्म का पागलपन। तम का अर्थ होता है, आलस्य, सस्ती। तम का अर्थ होता है, अकर्म में आसक्ति और रज का अर्थ होता है, कर्म में आसक्ति। कुछ लोग हैं जो बिना किये नहीं बैठ सकते, कुछ-न-कुछ चाहिए, कुछ-न-कुछ खटर-पटर करते ही रहेंगे-बैठ नहीं सकते। यह जो उनके भीतर रज की प्रवृत्ति है, यह उन्हें कभी शात न होने देगी। यह एक तरह का रोग है। इस तरह अपने को उलझाए रखते हैं, कुछ-न-कुछ करते रहते हैं। छुट्टी के दिन भी तुम उनको घर में शांत बैठे नहीं पाओगे, कुछ-न-कुछ करेंगे। ऐसे छ: दिन रास्ता देखेंगे कि कब छुट्टी का दिन आए और आराम करें, और छुट्टी के दिन तुम देखोगे वह सबसे ज्यादा काम करेंगे, जितना वह कभी दफ्तर में नहीं करते। दफ्तर में तो लोग सोते हैं। विश्राम करते हैं। और रास्ता देखते हैं कि सातवें दिन जब छुट्टी होगी तब घर जाकर विश्राम करेंगे। लेकिन विश्राम बड़ा कठिन मालूम होता है। विश्राम करने की कला बहुत कम लोगों को आती है। और जिनको तुम विश्राम करते देखते हो, उनको भी विश्राम की कला नहीं आती, वे आलसी हैं। या तो लोग पागल की तरह कर्मठ हैं, या पागल की तरह आलसी हैं। कुछ हैं जो बैठ नहीं सकते और कुछ हैं जो उठ नहीं सकते। ये दोनों अपाहिज हैं, दोनों अपंग हैं।
जो सत्व को उपलब्ध व्यक्ति है, जब जरूरत होती तब काम करता है, जब जरूरत नहीं होती, तब विश्राम करता है। उसके लिए दोनों आयाम मुक्त हैं। वह किसी आयाम से बंधा नहीं है। कोई मजबूरी नहीं है। ऐसा नहीं है कि जब कोई काम नहीं है तब भी उसे करना पड़ेगा, क्योंकि वह बिना काम के बैठ नहीं सकता। और ऐसा भी नहीं है कि जब काम है तब वह पड़ा रहेगा, क्योंकि वह आलसी है और उठ नहीं सकता। सत्य को उपलब्ध व्यक्ति संयम को उपलब्ध व्यक्ति है। उसके जीवन से अतियां चली गयीं। संतुलन आया है। उसकी तुला मध्य में ठहर गयी। उसके दोनों बालू दोनों पलड़े बराबर हो गये। जब काम, तब वह काम करता है, जब आराम, तब आराम करता है। जब श्रम की जरूरत हो, तब अपने को पूरा श्रम में इबा देता है, जब विश्राम की जरूरत हो तब अपने को पूरा विश्राम में इबा देता है। ऐसा आदमी ही शोभायमान है।
__ तुम्हें ये दो तरह के आदमी जगह-जगह मिल जाएंगे। कुछ लोग हैं जो रात नींद में भी काम जारी रखते हैं। तुम उनको सोते देखो तो तुमको समझ में आ जाएगा। सोना भी, बड़ा काम करते हैं, हाथ-पैर फटकते हैं, पैर चलाते हैं, बोलते हैं, बड़बड़ाते हैं, चादर खींचते हैं, कई काम करते हैं।
मैं कुछ दिन पहले एक चिकित्साशास्त्र की किताब पढ रहा था, तो मैं चकित हुआ, जितनी कैलोरीज आदमी दिन में खर्च करता है काम करने में, उससे आधी कैलोरीज रात में खर्च करता है सोते में भी! आधी कैलोरीज! दिन भर मेहनत करके जितना श्रम होता है उससे आधा वह सोने में भी कर रहा है।
और सपने भी देखते हैं वह ऐसे ही। लोगों के सपने तो देखो! तो मार-धाड़, वही सब योजनाएं