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उठा कर प्रार्थना करता है। वासना का अर्थ है, आंखें नीचे गड़ गयी हैं। इसीलिए तो जब भी तुम वासना से भरते हो, तुम शर्म से आंखें नहीं उठा पाते, आंखें नीचे झुक जाती हैं। जहां वासना है, वहां आंखें नीचे झुक गयीं। वहा तुम जमीन में गड़ गये। जहां प्रार्थना है, आंखें ऊपर उठ गयीं। वहां तुम आकाश में उड़ने लगे। ठीक ऐसी ही घटना भीतर घटती है। जब तुम वासना में होते हो, तुम्हारी दिशा नीचे की तरफ होगी। चले पशु की तरफ ! जहां से आए थे, उसी पुरानी परिपाटी पर फिर वापिस दौड़ने लगे। वह जाना-माना मार्ग है। इसलिए सुगम मालूम होता है। परिचित है जन्मों-जन्मों का, हम वहा से होकर आए हैं, इसलिए उस रास्ते पर जाने में अड़चन नहीं मालूम होती । आगे, जब तुम भीतर आंखें उठाते हो और सहस्रार की तरफ देखते हो, तब अड़चन हो जाती है। तब नया रास्ता है, अपरिचित है, पता नहीं कहां ले जाए, क्या परिणाम हो, शुभ हो कि अशुभ हो, भय लगता है।
फिर नीचे के रास्ते पर सारी भीड़ तुम्हारे साथ है। वहां तुम अकेले नहीं हो। जब तुम वासना में डूबते हो, सारा संसार तुम्हारे साथ है। जब तुम प्रार्थना में जाते हो, तुम अकेले। वह एकाकी पथ है। प्रार्थना में कौन किसका साथी हो सकता है !
इसे तुमने खयाल किया? कामवासना में कम-से-कम एक व्यक्ति तो साथी हो ही सकता है। जिस स्त्री के तुम प्रेम में, जिस पुरुष के प्रेम में, वह तो साथी हो ही सकता है। कामवासना में साथ संभव है। लेकिन प्रार्थना तो बिलकुल निपट अकेली है। वहां तो दूसरा साथ नहीं हो सकता। वहा तो तुम अकेले रह गये, आत्यंतिक रूप से अकेले रह गये। भय लगता, घबड़ाहट होती। फिर ऊपर जाने में गिरने का भी डर है। नीचे जाने में गिरने का कोई डर ही नहीं है, नीचे तो जा ही रहे हैं, गिरने का सवाल ही कहां है? घाटियों में जो जीते हैं, वे गिरेंगे कैसे! शिखरों पर जो जीते हैं, वे गिर सकते हैं। इसलिए तुमने कभी भोगभ्रष्ट शब्द नहीं सुना होगा, योगभ्रष्ट शब्द सुना होगा। भोगी तो भ्रष्ट हो ही नहीं सकता। अब और क्या भ्रष्ट होना है ! अब भ्रष्ट होने को जगह कहां बची है? योगी भ्रष्ट होता है-हो सकता है। क्योंकि योग एक शिखर है। ऊंचाई पर जो उड़ते हैं, वे खतरा मोल लेते हैं। जितनी बड़ी ऊंचाई, उतना ही बड़ा खतरा ।
पहाड़ों पर चढ़े हो कभी? जैसे-जैसे ऊंचाइयों पर चढ़ने लगते हो वैसे-वैसे खतरा बढ़ने लगता है। जैसे ऊंचाई बढ़ने लगती है, जैसे गौरीशंकर करीब आने लगेगा, वैसे-वैसे खतरा तुम मोल ले रहे हो, चुनौती तुम मोल ले रहे हो। जरा-सी चूक और मौत हो जाएगी। ऐसी चूक अगर घाटी में होती तो कुछ भी नहीं होने वाला था। चूक यही होती, ज्यादा-से-ज्यादा पैर में मोच लग जाती और क्या होता? कि गिर पड़ कर थोड़ा घुटना छिल जाता और क्या होता? लेकिन अगर यही चूक गौरीशंकर पर हुई तो प्राणांत होगा। जितनी ऊंचाई, उतना ही महंगा सौदा है। इसलिए सिर्फ दुस्साहसी धर्म के जगत में प्रवेश कर पाते हैं। अपूर्व साहस चाहिए।
कायर वासना में ही जीते हैं, वासना में ही समाप्त हो जाते हैं। महावीरों की ही क्षमता है ऊपर की यात्रा पर उड़े। वहा पंख फैलाएं जहां सूना आकाश है। जहां बिलकुल अकेला रह जाता है प्राणों का पक्षी। जहां कोई संगी-साथी नहीं, कोई समाज नहीं, कोई संप्रदाय नहीं । उस स्वात में ही खिलता