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है-अमृत। और दोनों जुड़े हैं मन से। तो मन आधा-आधा प्रभावित है। आधा प्रभावित है शरीर से और आधा प्रभावित है आत्मा से। तो मन के आधे हिस्से में तो दिन होता है, और मन के आधे हिस्से में रात होती है। ज्ञानी व्यक्ति बस वहीं तक आता है जहां तक दिन होता है। मन के उस हिस्से तक आता है जहां तक रोशनी होती है। जहां रोशनी समाप्त होती है, वहीं रुक जाता है, वहीं शयन करता है। उसके आगे नहीं जाता। अंधकारपूर्ण हिस्सों में प्रवेश नहीं करता। अंधकार में यात्रा नहीं करता। रुक जाता है।
अज्ञानी अंधकार में ही चलता है। उसे पता ही नहीं कि उसके भीतर भी कोई सूर्योदय होते हैं। अज्ञानी को बाहर की रोशनी का पता है, बाहर के अंधेरे का पता है। भीतर की रोशनी, अंधेरे, दोनों अपरिचित हैं।
या, एक दूसरा विभाजन भी है। सात चक्र हैं शरीर के। तीन चक्र नीचे हैं, तीन चक्र ऊपर हैं, एक चक्र मध्य में है जो जोड़ता है। जो जोड़नेवाला चक्र है, उसका नाम अनाहत। हृदय-चक्र। उसके नीचे तीन चक्र हैं और ऊपर तीन चक्र हैं। जो नीचे के तीन चक्र हैं उनसे संसार निर्मित होता है, जो ऊपर के तीन चक्र हैं उनसे मुक्ति निर्मित होती। और दोनों के बीच में है हृदय का चक्र। हृदय दोनों को जोड़ता है।
तो नीचे के चक्रों का भी संबंध हृदय से है। इसलिए नीचे के चक्रों में जीनेवाला आदमी भी प्रेम करता है। लेकिन उसका प्रेम निम्नता में दबा होता है। ऊपर के चक्रों में जीनेवाला आदमी भी प्रेम करता है, लेकिन उसका प्रेम विराट आकाश की तरह उन्यूक्त होता है। प्रेम में दोनों भागीदार हैं-अज्ञानी और ज्ञानी। क्योंकि हृदय में दोनों भागीदार हैं-अज्ञानी और ज्ञानी। आधा हृदय अंधेरे से भरा है। उसी को काम कहो, वासना कहो, हिंसा कहो। और आधा हृदय प्रार्थना से भरा है। उपासना कहो, पूजा कहो, आराधना कहो, अर्चना कहो-जो भी नाम देना चाहो।
ज्ञानी हृदय के उस आधे बिंदु तक आता है जहां तक रोशनी है। वहीं विश्राम करता है, उससे आगे नहीं जाता। अज्ञानी अंधेरे- अंधेरे में चलता है, जहां रोशनी का क्षण आता है वहीं सो जाता है। ज्ञानी जहां अंधेरा आता है वहां प्रवेश नहीं करता। अज्ञानी जहां रोशनी आती है वहां प्रवेश नहीं करता। कृष्ण ने गीता में कहा है 'या निशा सर्वभूतानाम् तस्या जागर्ति संयमी।' जो सबके लिए रात है, वह संयमी के लिए दिन है। और जो संयमी के लिए दिन है, वह सबके लिए रात है। जहां संयमी का दिन है, जहां उसकी कर्मठता है, वहां तो तुम सोए हुए हो जहां तुम जागे हो, वहां संयमी सोया हुआ है। जहां तुम्हारा सूर्योदय है, वहां सूर्यास्त है संयमी का। और जहां तुम्हारा सूर्यास्त हो जाता है वहां संयमी का सूर्योदय होता है।
तुम आधे - आधे में बंटे हो। तुमने निम्न तल को चुन लिया अपने लिए। अंधेरी रात को। यह तुम्हारा चुनाव है। इसलिए इस चुनाव के बाहर जाने का एक ही उपाय है कि तुम थोड़े - थोड़े जागने लगो और थोड़े- थोड़े प्रेमपूर्ण होने लगो। या तो जागो, तो ऊपर उठो; या प्रेमपूर्ण हो जाओ तो ऊपर उठो। तो दो मार्ग हैं-ध्यान और प्रेम।