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तुम कहते हो कि मैं चाहता हूं कि तू खुश हो यह कैसी खुशी है जो तुम चाहते हो! यह किसीको देखकर मुस्कुराती थी, या किसी के पास बैठकर आनंदित थी, तुम्हें प्रसन्न होना था अगर तुम प्रेम करते थे। तुम्हारा प्रियपात्र प्रसन्न हो, यह तुम्हारी प्रसन्नता होती। लेकिन नहीं, यह प्रेम इत्यादि तो बातें हैं। बकवास है। भीतर तो कुछ और है। भीतर तो मालकियत है, कब्जा है। तो पुरुष स्त्रियों को स्त्रीधन कहते हैं। स्त्री धन है। उस पर तुमने कब्जा कर लिया है। वह तुम्हारी है।
पति अपने को मालिक कहता है, स्वामी । और स्त्रियां भी अपने को दासी कहती हैं; हालांकि भीतर से कोई दासी अपने को मानती नहीं। कहती हैं, कहना पड़ता है। और बड़ी छुपी तरकीब से वे भी अपनी मालकियत कायम रखती हैं। तुम्हारा प्रेम सिर्फ ईर्ष्या के ही हजार-हजार लपटों को जन्माता है और कुछ भी नहीं । तुम्हारे प्रेम में जो पड़ जाता है, वह मरता है, पछताता है, और कुछ भी नहीं । ऐसा प्रेम ज्ञानी में नहीं है। यह सच। लेकिन इसके न होने की वजह से ही ज्ञानी में एक अपूर्व प्रेम का जन्म होता है। लेकिन उस अपूर्व प्रेम को वे ही समझ पाएंगे, जो थोड़े ऊंचे उड़े हैं। जमीन से थोड़े ऊपर उठे हैं। अगर तुम्हारी प्रेम की परिभाषा बड़ी छुद्र है, तो तुम बुद्ध और महावीर के प्रेम को न समझ पाओगे। इसलिए बुद्ध को नया शब्द खोजना पड़ा, प्रेम न कहकर करुणा कहा। क्योंकि लगा कि अगर प्रेम कहूंगा तो लोग समझेंगे वही प्रेम जो वे करते हैं। महावीर को और भी ज्यादा निषेधात्मक शब्द खोजना पड़ा, कहा- अहिंसा। क्योंकि तुम्हारा प्रेम हिंसा है, इसलिए महावीर को परिभाषा करनी पड़ी अपने प्रेम की अहिंसा । तुम्हारा प्रेम तो मारता है, जिलाता कहां है ! तोड़ता है, मिटाता है, खंडित करता है, विध्वंसक है।
कहती है अपने बेटे को, मैं तुझे प्रेम करती हूं, और उसको सब तरफ से ऐसा कस लेती है कि बेटा मर जाएगा। कौन अपने बेटों को जीने देना चाहता है स्वतंत्रता से! तुम उन्हें जीने देना चाहते हो उसी आधार पर, जैसा तुम चाहो। तुम्हारी आकांक्षा से। तुम चाहते हो तुम्हारे बेटे तुम्हारे प्रतिनिधि हों। तुम चाहते हो तुम्हारे बेटे बस तुम्हारी शक्लों को फिर-फिर दोहराते रहें। तुम चाहते हो तुम्हारे बेटे तुम्हारी अनुकृतिया हों, कार्बन कॉपी । तुम उन्हें थोड़े ही चाहते हो! तुम मर जाओगे यह तुम्हें पता है। तुम बेटों की शकल में अपने को फिर जिंदा रखना चाहते हो, बस। इसलिए इस देश में तो कहा जाता है कि जिसको बेटा पैदा न हो, उसका जीवन अकारथ । बेटा होना ही चाहिए। अगर अपना न हो तो चलो किसी दूसरे का गोदी ले लेना, लेकिन बेटा होना ही चाहिए।
क्यों होना चाहिए बेटा? क्योंकि बेटे के कंधे पर चढ़कर तुम्हारा अहंकार चलता रहेगा। तुम तो चले जाओगे, लेकिन कोई तो रहेगा, नाम लेवा! कोई तो होगा, तुम्हारी साख को चलाएगा। तुम्हारी दुकान तो चलती रहेगी।
यह तो अहंकार का ही विस्तार है। इसलिए महावीर ने कहा अपने प्रेम को अहिंसा । वास्तविक प्रेम अहिंसा है। वास्तविक प्रेम हिंसा कर ही नहीं सकता। वास्तविक प्रेम में निषेध और नकार है ही नहीं। वास्तविक प्रेम पूरी स्वतंत्रता देता है।
बुद्ध ने कहा, करुणा । जिससे तुम्हें प्रेम है, उसके प्रति तुम्हें करुणा होगी। दया होगी। तुम उसे