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जब कि दोनों के बीच में कहीं मार्ग है। तुम्हें करना भी है और कर्ता नहीं बनना है। तुम्हें पुकारना भी है और ध्यान रखना है कि तुम्हारी पुकार में उसने ही पुकारा है। तुम्हें झुकना भी है और जानना है कि उसने ही झकाया होगा; अन्यथा हम झुकते? हम जैसे पत्थर झुकते? हम जैसे पहाड़ झुकते? तुम रोओ तो जानना कि वही तुम्हारे आसुरों में आया। नहीं तो हम जैसे पाषाणों से आंसू बहते?
खयाल रखना, करना है और कर्ता नहीं बनना है। पहल लेनी है और स्मरण रखना है कि पहल भी वही लेता है। जाना है उसकी तरफ, खोजना है उसे और सदा याद रखना है कि वह तुम्हें खोज रहा है। वह खोजता तुम्हारे पास आ रहा है। तुम्हारी खोज में भी उसी ने ही अपने हाथ फैलाये हैं। उसी ने ही अपनी अभीप्सा फैलाई है। तुम्हारी प्रार्थना भी जब उसी के दवारा की गई प्रार्थना बन जाती है तभी......|
और ये दोनों बातों में ध्यान रखना, नहीं तो दोनों तरफ खाई-खड्ड हैं और बीच में मार्ग है। या तो तुम कर्ता होने को तैयार हो। तुम कहते हो, फिर हम सब कर लेंगे। कर्ता-धर्ता सब हम। तो तुम अहंकारी हो जाते हो। या तुम कहते हो, हम कुछ भी न करेंगे। अब वह पुकारता भी रहे तो तुम उसकी पुकार में भी स्वर का साथ न दोगे। तुम कहोगे, अब तू पुकार ही रहा है तो हम और बीच में क्यों बाधा डालें? अब तुम पुकारो| अब तुमको गाना ही है तो गाओ। हम अपनी बांसुरी भी तुम्हारे ओंठ पर क्यों रखें? जब गाना ही तुम्हारा है, बांसुरी का तो है नहीं कुछ, पोली है। हमारी क्या जरूरत?
मगर मैं तुमसे कहता हूं तुम्हारी पोली बांसुरी और उसके ओंठ दोनों के मिलन से घटना घटती है। तुम्हारा निमित्त भाव और उसका कर्तृत्व, दोनों के मिलन से घटना घटती है।
आज इतना ही।