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तराजू तौलता रहता है। मगर अगर तुम्हें जानना है असली शांति तो उसके पास जाओ। और जो पक्षी तुम्हारे बुलाये नहीं आते, तुलाधर के इशारे पर चले आयेंगे। हजारों मील से।
'कहां रहता है तुलाधर?' तो उसने कहा, 'वह काशी में रहता है।'
तो इस बेचारे ने यात्रा की, काशी पहुंचा। बड़ा हैरान हुआ। भीडुम- भक्क! काशी की गलियां! निकलना मुश्किल, चलना मुश्किल, जगह-जगह नाराजगी होने लगी। कोई धक्का मार दे, किसी का पैर पैर पर पड़ जाये। संकरी गलियां और भीड़-भाड़। और यह कहने लगा यह कोई जगह है, जहां कोई ज्ञान को उपलब्ध हो? यहां तो अगर ज्ञानी भी आये तो अज्ञानी हो जाये। इधर मुझे तक क्रोध आ रहा है। यह तुलाधर वैश्य यहां कहां ज्ञान को उपलब्ध हो गया? लेकिन ठीक, आ गया तो उसका दर्शन कर लूं।
गया तो वहां तो बड़े ग्राहक खड़े थे। और वह बड़ा हैरान हुआ| तुलाधर के कंधे पर वही पक्षी बैठा था, जो उसके सिर से उड़ गया था क्योंकि वह हिल गया था। उसने कहा, यह बड़ा चमत्कार है। बात कुछ होनी चाहिए इस आदमी में। उसने तुलाधर से पूछा कि तेरा राज क्या?
उसने कहा, मेरा कुछ ज्यादा राज नहीं। मैं कोई पंडित नहीं, कोई ज्ञानी नहीं। यहां तराजू को तौलते -तौलते भीतर भी तौलना सीख गया। इधर तराजू तुलता, उधर भीतर मैं तुलता हूं। इधर जब दोनों पलड़े बराबर हो जाते हैं, काटा ठीक बीच में आ जाता है तब मैं भी अपने कांटे को बीच में ले आता हूं। दोनों पलड़े बराबर कर लेता हूं। सुख-दुख बराबर। सफलता-असफलता बराबर। संसार- मोक्ष बराबर। शांति-अशांति बराबर। मिलना न मिलना बराबर। मिलन बिछोह बराबर। सब वंद्व को तौल लेता हूं। बस तराजू का काटा बीच में है, जैसा बना रहता है, इसी को देखते-देखते. मैं बनिया हूं। और तो मैं कुछ ज्यादा जानता नहीं। ध्यान इत्यादि मैंने किया नहीं। आप महातपस्वी हैं। आप कैसे आये? आपके चरण लग।
तब उस ज्ञानी की आंख खुली। जंगल में खड़े होकर शांत हो जाने में कोई बड़ी शांति नहीं है। जंगल में जो शांत न हो जाये वही थोड़ा विशिष्ट पुरुष है। जंगल में तो कोई भी शांत हो जायेगा। हिमालय पर गये कभी? हिमालय की शीतलता भीतर प्रवेश करने लगती है, छूने लगती है। सब शांत होने लगता है। लेकिन उस शांति में तुम्हारा क्या है? उतरोगे पहाड़ से, जैसे-जैसे तुम उतरोगे वैसे -वैसे शांति उतर जायेगी। वह पहाड़ के साथ ही पीछे छूट जायेगी। शांति तो वहां, जहां शांति का कोई उपाय नहीं है।
भक्त कहता है, यह संसार तेरा है। तेरे हाथ की इसमें छाप है। तेरे हाथ की छाप से मेरा कोई विरोध नहीं। बस तेरे हाथ की छाप में ही तेरे को खोंजूंगा। और जहां तेरे हाथ की छाप है, कहीं तू भी छिपा होगा। कहीं तुझे पकड़ ही लूंगा, खोज ही लूंगा। और फिर जल्दी भी नहीं है। क्योंकि खोज भी इतनी रसपूर्ण है।
भक्त की भाषा अलग है। भवसागर जैसा गंदा शब्द वह उपयोग करता ही नहीं। भवसागर तो