________________
बदल जायेगा। लेकिन अब उपाय हैं इस बात को जानने के कि वृक्ष बदल जाता है। जब इतने लोग इसे प्रेम से देखते हैं तो वृक्ष एक और तरंग में होता है। इतने लोग अगर क्रोध से देखें तो वृक्ष और अवस्था में होता है। कुल्हाड़ी लेकर आ जाये इस वृक्ष को काटने के लिए कोई तो अभी काटा नहीं, अभी कुल्हाड़ी लानेवाला ला ही रहा है, लेकिन कुल्हाड़ीवाले के मन में जो विचार उठ रहे हैं इसको काटने के, उनकी तरंगें उस तक कुल्हाड़ी से पहले पहुंच जाती हैं। और वृक्ष भयभीत हो जाता है, कै लगता है, दुखी हो जाता है।
जब माली आता है वृक्ष के पास, जो रोज पानी देता है, तो दूर से ही माली को आते देखकर वृक्ष तृप्त होने लगता है। अब इस पर वैज्ञानिक परीक्षण हो गये हैं। और वैज्ञानिक परीक्षणों ने तय कर दिया है कि वृक्ष भी अनुभव करते हैं । और देखने मात्र से रूपांतरण हो जाता है।
तु
खयाल किया अपने जीवन में? अगर चार लोग तुम्हें प्रेम से देखें तो तुम बदलते हो या नहीं? और चार लोग तुम्हें क्रोध से देखें तो तुम बदलते हो या नहीं? क्या तुम वही रहते हो जब चार लोग तुम्हें क्रोध से देखते हैं, घृणा से देखते हैं, अपमान से देखते हैं? या चार व्यक्ति तुम्हें परिपूर्ण प्रेम और आदर और सम्मान से देखते हैं? तुम्हारे भीतर रूपांतरण होते हैं। तुम्हारे भीतर सूक्ष्म भेद पड़ते हैं।
और ये तो बाहर की नजरें हैं। भीतर की नजर का तो कहना क्या! भीतर तो नजरों की नजर है। भीतर तो आंखों की आंख है। उस आंख को ही तो हमने तीसरी आंख कहा है। वहां तो शिवनेत्र है। अगर तुमने भीतर सब बाहर की आंख बंद करके उस तीसरे नेत्र से, उस भीतर की आंख से, उस भीतर की दृष्टि से अपनी किसी भी चित्त की दशा को देखा तो तुम पाओगे, रूपांतरण हो गया।
ज्ञानियों ने यही कहा है- ज्ञानाद्गलितकर्मा- तुम वासना को देखोगे और वासना गई। तुम क्रोध को देखोगे और क्रोध गया । तुम लोभ को देखोगे और लोभ गया। तब तो तुम्हारे हाथ में कुंजी लग गई-कुजियों की कुंजी कि तुम जिसको देखोगे वही गया|
फिर एक और मजे की बात है, सभी देखने से नहीं चला जाता। कुछ चीजें हैं जो देखने से विकसित होती हैं और कुछ चीजें हैं जो चली जाती हैं। अगर तुम अध्यात्म का आधार समझना चा तो जो तुम्हारी दृष्टि के सामने न टिक सके और चला जाये, वही पाप । और जो तुम्हारी दृष्टि में न केवल टिके बल्कि फलने-फूलने लगे, वही पुण्य । यह पुण्य और पाप की परिभाषा ।
तुमने बहुत परिभाषायें सुनी होंगी वे सब कचरा हैं। पुण्य और पाप की एक ही परिभाषा है. तुम्हारे अवलोकन में जो बढ़ने लगे और तुम्हारे अवलोकन में जो क्षीण होने लगे- बस, समझ लेना । अगर तुमने गौर से प्रेम को देखा तो प्रेम बढ़ता है, जाता नहीं। यही तो मजा है। और क्रोध को देखा तो क्रोध चला जाता है; बढ़ता नहीं, घटता है। जिस मात्रा में बोध बढ़ता है उसी मात्रा में क्रोध घटता है । जिस मात्रा में बोध कम होता है, क्रोध ज्यादा होता है। बोध एक प्रतिशत, क्रोध निन्यानबे प्रतिशत। बोध पचास प्रतिशत, क्रोध पचास प्रतिशत। बोध साठ प्रतिशत, क्रोध चालीस प्रतिशत। बोध निन्यानबे प्रतिशत, क्रोध एक प्रतिशत। बोध सौ प्रतिशत, क्रोध शून्य ।