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अगर अपनी ही बात मान सकते हो, तब तो बहुत ही अच्छा। अगर दौलतराम पर भरोसा न हो, और डर हो कि जब कह रहे हैं तभी जान रहे हैं कि यह कुछ होने वाला थोड़े ही है! कह रहे हैं कि दौलतराम, पांच बजे सुबह उठ आना। लेकिन कहते वक्त भी जान रहे हैं कि यह कहीं होनेवाला थोड़े ही! ऐसे तो कई दफे कह चुके । कभी हुआ ?
विवेकानंद अमरीका में एक जगह बोलते थे। तो उन्होंने बाइबिल का उल्लेख किया, जिसमें जीसस ने कहा है, अगर श्रद्धा हो तो पहाड़ भी हट जायें। अगर श्रद्धा से कह दो, 'हट जाओ पहाड़ो' तो पहाड़ भी हट जायें।
एक बूढ़ी औरत सामने ही बैठी थी, वह भागी । वह अपने घर भागी । उसके पीछे एक छोटी पहाड़ी थी, जिससे वह बहुत परेशान थी । उसने कहा अरे, इतनी सरल तरकीब ! और मुझे अब तक पता नहीं थी। और बाइबिल मेरे घर में पड़ी है। ईसाई थी। और उसने कहा, मैं तो ईसाई हूं और मुझमें श्रद्धा भी है ईसा पर जाकर अभी निपटा देती हूं इस पहाड़ी को । खिड़की खोलकर उसने आखिरी बार देख ली पहाड़ी कि एक बार और देख लूं। फिर तो यह चली जायेगी। खिड़की बंद करके उसने कहा, हट जा पहाड़ी ! श्रद्धा से कहती हूं। ऐसा तीन बार दोहराया। फिर खिड़की खोलकर देखी, हंसने लगी। कहा, मुझे पता ही था, ऐसे कहीं हटती है ! पता ही था, ऐसे कहीं हटती है। यह कोई मजाक है कि कह दो, पहाड़ी हट जाये ।
मगर अगर पता ही था तो नहीं हटती । भीतर तुम पहले से ही जान रहे हो कि नहीं होनेवाला, नहीं होनेवाला। यह अपने से नहीं हो सकता है। तो फिर नहीं होगा। तो फिर अलार्म घड़ी भरकर रख दो । या किसी पड़ोसी को कह दो कि पांच बजे उठा देना। कोई उपाय करो।
गुरु के पास समर्पण का केवल इतना ही अर्थ है कि तुमसे नहीं होता तो अलार्म भर दो। गुरु अलार्म है। जगा देगा। तुमसे नहीं बनता तो वह तुम्हें जगा देगा।
एमेन्युएल कांट हुआ जर्मनी का बहुत बड़ा विचारक; वह अकेला रहा जिंदगी भर, शादी नहीं की। लेकिन एक नौकर को अपने पास रखता था । वह धीरे-धीरे नौकर उसका मालिक हो गया । क्योंकि नौकर पर निर्भर रहना पड़ता । और एमेन्युएल कांट बिलकुल पागल था समय के पीछे। मिनट-मिनट, सेकेंड-सेकेंड का हिसाब रखता था । अगर ग्यारह बजे खाना खाना है तो ग्यारह ही बजे खाना खाना | दो मिनट देर हो गई तो मुश्किल। रात दस बजे सोना है तो दस बजे सो जाना है। कभी-कभी तो ऐसा हुआ कि कोई मिलने आया था, वह बात ही कर रहा है और वह उचककर अपना कंबल ओढ़कर सो गया। क्योंकि दस बज गया। घड़ी में देखा । वह इतना भी नहीं कह सकता कि अब मेरे सोने का वक्त हो गया, क्योंकि इसमें भी तो समय लग जायेगा। वह सो ही गया। नौकर आकर कहेगा, अब आप जाइये । मालिक सो गये।
और सुबह तीन बजे उठता था । और तीन बजे उठने में उसे बड़ी अड़चन थी। मगर जिद्दी था। उठता भी था और अड़चन भी थी । अड़चन इतनी थी कि नौकर से मारपीट हो जाती थी। नौकर उठाता था; और मारपीट हो जाती । तो नौकर टिकते नहीं थे। क्योंकि नौकर कहते यह भी अजीब बात है । आप कहते हैं कि तीन बजे उठाना। हम उठाते हैं, आप गाली बकते हो। मारने को खड़े हो जाते हो। मगर वह कहता कि यही तो तुम्हारा काम है। तुम चाहो मुझे मारो, तुम चाहो मुझे गाली दो, मगर
घन बरसे
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