________________
आसपास जो लोग थे उन्होंने कहा, यह क्या करते हो? तुम्हें लोग रोता देखेंगे तो क्या सोचेंगे ? बुद्धपुरुष कहीं रोते ?
तो रिझाई ने कहा, तो समझ लो कि मैं बुद्धपुरुष नहीं। मगर अब रोना हो रहा है, तो क्या करूं? मेरे गुरु ने एक ही बात मुझे सिखाई थी कि जो स्वाभाविक हो उसे होने देना। अभी तो आंसू आ रहे । पर लोगों ने कहा, तुम्हीं तो समझाते रहे कि आत्मा अमर है। अब रोते क्यों ?
रिंझाई ने कहा, मैं आत्मा के लिए रो भी कहां रहा हूं? यह शरीर भी बड़ा प्यारा था। आत्मा तो अमर ही है, उसके लिए कौन रो रहा है? यह गुरु की देह भी बड़ी प्यारी थी । अब दुबारा इसके दर्शन न हो सकेंगे। अब अनंत काल में इसका कभी साक्षात्कार न हो सकेगा। एक अपूर्व घटना का विसर्जन हो रहा है, तुम मुझे रोने भी न दोगे ? तुम सम्हालो अपना बुद्धपुरुष और बुद्धपुरुष की परिभाषा । मैं जैसा, वैसा भला । लेकिन मुझे स्वाभाविक होने दो।
और मैं तुमसे कहता हूं, रिंझाई बुद्धपुरुष था इसलिए रो सका। तुम जैसा कोई बुद्धू होता, अगर आंसू भी आ रहे होते तो रोककर बैठ जाता कि यह मौका कोई रोने का है ? सारी इज्जत पर पानी फिर जायेगा। अभी रोने का मौका है ? रो लेना एकांत में, अकेले में करके दरवाजा बंद । अभी तो न रोओ। भीड़-भाड़ के सामने तो अकड़कर बैठे रहो कि ज्ञान को उपलब्ध हो गये हैं, कैसा रोना ? अरे ज्ञानी कहीं रोते हैं? यह तो अज्ञानी रोते हैं।
नहीं, यह निश्चित ही बुद्धपुरुष रहा होगा। तभी तो बुद्धपुरुष होने की बात को भी दो कौड़ी में फेंक दिया। कहा, रख आओ, सम्हालो तुम्हीं । तो फिर मैं बुद्धपुरुष नहीं। बात खतम हुई। मगर जो सहज हो रहा है, होने दो।
बुद्धपुरुष होने का अर्थ होता है, सहजता, समग्रता । जीवन समग्र है । कहना मुश्किल है । बुद्धपुरुषों के संबंध में कोई भविष्यवाणी नहीं हो सकती। बुद्धपुरुष ऐसे मुक्त जैसे आकाश
ऐसा हुआ, गौतम बुद्ध के जीवन में उल्लेख है कि जब वे बारह वर्ष के बाद अपने घर वापिस लौटे तो स्वभावतः अपने पिता को, अपनी पत्नी को, अपने बेटे को मिलना चाहे। तो आनंद ने कहा कि यह शोभा नहीं देता। बुद्धपुरुष का कौन पिता, कौन बेटा, कौन पत्नी ? बात खतम हो गई। तो ज्ञान को उपलब्ध हो गये ।
बुद्ध ने कहा, मैं तो हो गया लेकिन वे नहीं हैं अभी उपलब्ध। उनका मोह अभी भी मेरे प्रति है । और मैं तो मुक्त हो गया लेकिन मेरा ऋण तो कायम है। उनसे मैंने जन्म लिया । और इस पत्नी को मैं बारह साल पहले छोड़कर अंधेरी रात में भाग गया था, क्षमा तो मांग लेने दो। मेरी यात्रा तो पूरी हो गई, लेकिन वह तो अभी भी जली-भुंजी बैठी है। अभी भी नाराज है। बड़ी मानिनी है यशोधरा। उसने मुझे क्षमा नहीं किया । और जब तक मैं क्षमा न मांगूं वह क्षमा करेगी भी नहीं । अब मुझे उससे क्षमा मांग लेने दो ताकि वह भी मुक्त हो जाये। यह बात गई-गुजरी हो गई। जो हुआ, हुआ ।
आनंद जरा कसमसाया। उसको यह बात जंचती नहीं । बुद्धपुरुष को क्या लेना-देना? फिर भी अब नहीं मानते तो ठीक है, गया!
आनंद जब संन्यस्त हुआ था - आनंद बुद्ध का बड़ा भाई था स्वयं, चचेरा बड़ा भाई | जब वह संन्यस्त हुआ था, बुद्ध से दीक्षा ली थी तो दीक्षा के पहले उसने कहा था कि मेरी कुछ शर्तें हैं। दीक्षा
अवनी पर आकाश गा रहा
375