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होते तब तो कुछ भी कारण न था। नहीं हो, मगर हो सकते हो। द्वार खुला है, चलना पड़े।
यह जो तुम्हारा नाम है इसे दूर की मंजिल समझना। वह जो दूर तारों के पार सच्चिदानंद-रूप है, वह मैंने तुम्हें नाम दे दिया है। नाम से तुम्हें जोड़ दिया उससे। अब तुमसे कह दिया, अब चलो। लंबी यात्रा है। दुर्गम पथ है। कंटकाकीर्ण मार्ग है। भटक जाने की पूरी संभावना है, पहुंचने की संभावना बहुत कम है। लेकिन यह नाम तुम्हें दे दिया, यह एक दूर के तारे की तरह तुम्हें रोशनी देगा। और जब तुम भटकने लगोगे और जब तुम गिरने लगोगे तब तुम्हें याद दिलायेगा कि सच्चिदानंद, यह क्या कर रहे? यह तुम्हारे जैसा नहीं है।
सच्चिदानंद, यह तुम क्या कर रहे? चोरी कर रहे? यह तुम्हारे नाम से मेल नहीं खाता। सच्चिदानंद, यह किसी की हत्या करने को उतारू हो गये? यह तुम्हारे नाम से मेल नहीं खाता। सच्चिदानंद, उदास बैठे हो? मुर्दा बैठे हो? यह तुम्हारे नाम से मेल नहीं खाता। नाचो।
मयूरी नाच, छनाछन नाच मयूरी नाच, उन्मन-उन्मन नाच
आंगन-आंगन नाच तुम्हें याद दिलाने को, स्मरण दिलाने को।
आखिरी प्रश्नः क्या बुद्धपुरुष भी आंसू बहाते
द्धपुरुषों के संबंध में कोई भी बात
3 तय करनी उचित नहीं। बुद्धपुरुष ऐसे विराट, जैसे आकाश। बुद्धपुरुष के संबंध में कोई सीमा-रेखा नहीं खींची जा सकती। एक ही बात कही जा सकती है कि बुद्धपुरुष होने का अर्थ होता है, पूर्ण हो जाना। पूर्ण में सब समाहित है-आंसू भी। जैसे मुस्कुराहटें समाहित हैं वैसे ही आंसू भी।
एक झेन फकीर जापान में मरा। उसका शिष्य रिझाई बड़ा प्रसिद्ध था। इतना प्रसिद्ध था, गुरु से ज्यादा प्रसिद्ध था। सच तो यह है कि रिझाई के कारण ही गुरु की प्रसिद्धि हुई थी। लाखों लोग इकट्ठे हुए और रिझाई रोने लगा। गुरु की लाश पड़ी है और रिझाई के आंसू झरने लगे। और रिझाई के
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5