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फर्क समझ लेना। अज्ञानी जो कहता, वह झूठ। वह धोखा दे रहा है। कहने में मामला उसका सच नहीं है. वह झठ बोल रहा है। जो करता है. वही उसकी सचाई है। तम उसके कर्म से ही उसे पहचानना।
ज्ञानी के मामले में सिक्का बिलकुल उल्टा है। ज्ञानी जो कहता, बिलकुल सच; जो करता, वह झूठ। फर्क खयाल में आया? ज्ञानी जो कहता, बिलकुल सच कहता। कहने में जरा भी भूलचूक नहीं होती उसकी। लेकिन वह जो करता है, उस पर तम ज्यादा जोर मत देना। क्योंकि भूख लगेगी तो वह भी भोजन करेगा। आग लगेगी मकान में तो वह भी निकलकर बाहर आयेगा।।
वह भी कुछ कहेगा और करेगा कुछ। पूछने जाओगे तो वह कहेगा कि मैं कहां जल सकता? 'नैनं छिंदन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।' कहां आग जला सकती और कहां शस्त्र मुझे छेद सकते! लेकिन मकान में आग लगेगी तो तुम उसे भागते बाहर देखोगे। इससे तुम यह मत सोचना कि यह आदमी बेईमान है। वह जो कहता है, सच कहता है। उसके करने पर ध्यान मत देना, उसके कहने पर ध्यान देना। यह सच है, वह जो कह रहा है कि कहां मुझे कौन जला सकता? उसे कोई.जलाता भी नहीं। देह जलेगी, वह नहीं जलेगा। लेकिन देह में जब तक तुम हो, देह तुम्हारा मंदिर है; तुम्हारे देवता का आवास, उसकी चिंता लेना।
अज्ञानी की हालत भी ऐसी ही लगती है कि कुछ कहता, कुछ करता। लेकिन उसके करने पर ध्यान देना। वह जो करता है वही उसकी सचाई है; वह कहे कुछ भी। उसके करने में तुम सत्य को पाओगे, ज्ञानी के ज्ञान में तुम सत्य को पाओगे। ज्ञानी ज्ञान में जीता, कर्म में नहीं। अज्ञानी कर्म में जीता, ज्ञान में नहीं। ___'जो धीरपुरुष अनेक प्रकार के विचारों से थककर शांति को उपलब्ध होता है, वह न कल्पना करता है, न जानता है, न सुनता है, न देखता है।'
नानाविचारसुश्रांतो धीरो विश्रांतिमागतः। न कल्पते न जानाति न शृणोति न पश्यति।। 'जो धीरपुरुष अनेक प्रकार के विचारों से थककर शांति को उपलब्ध होता है...।'
और जल्दी मत करना। जल्दबाजी खतरनाक है, महंगी है। अधैर्य मत करना। अगर अभी विचारों में रस हो तो विचार खूब कर लेना, थक जाना। अगर संसार में रस हो तो जल्दी नहीं है कुछ। परमात्मा प्रतीक्षा कर सकता है अनंत काल तक। घबड़ाओ मत। जल्दी मत करना। संसार में रस हो तो थका लेना रस को। अगर बिना थके संसार से आ गये भागकर और छिप गये संन्यास में तो मन दौड़ता रहेगा। शांति न मिलेगी।
अगर विचारों में मन अभी लगा था और मन डांवांडोल होता था, और तुम किसी तरह बांधकर ले आये जबर्दस्ती तो भाग-भाग जायेगा। सपने उठेंगे। कल्पनाजाल उठेगा। मोह फिर पैदा होंगे। नये-नये ढंगों से पुरानी विकृतियां फिर वापिस आयेंगी; पीछे के दरवाजों से आ जायेंगी, बाहर के दरवाजे बंद कर आओगे तो। इससे कुछ लाभ न होगा। ___अष्टावक्र कहते हैं, जीवन को ठीक-ठीक जान लो। थक जाओ। जहां-जहां रस हो, वहां-वहां थक जाओ। जाओ। गहनता से जाओ। भय की कोई जरूरत नहीं है। खोना कुछ संभव नहीं। तुम कुछ
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5