SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीसरा प्रश्नः कैसा है यह अहंकार! जब-जब मैंने इसे तोड़ने की कोशिश की तब-तब वह बड़ी बेशर्मी के साथ मुझ पर हावी होकर अट्टहास करता रहा। अब और नहीं लड़ा जाता इससे प्रभु!. | तो मैंने तो तुमसे कहा भी नहीं कि तुम लड़ो। यही तो मैं कह रहा हूं कि अहंकार से लड़ना मत, अन्यथा तुम कभी जीतोगे न। क्योंकि तुम सोचते हो, तुम अहंकार से लड़ रहे । हो, असल में जो लड़ रहा है वही अहंकार है, इसलिए जीत हो नहीं सकती। कौन लड़ रहा है यह? यह कौन है जो अहंकार पर विजय पाना चाहता है। यह विजय पाने की आकांक्षा ही तो अहंकार है। पहले तुम संसार पर विजय पाना चाहते थे, अब आत्मविजय पाना चाहते हो। मगर विजय का नशा चढ़ा है। जीतकर रहोगे। पहले दुनिया को हराना चाहते थे, अब अपने को हराने में लगे हो। मगर जीतना है। भीतर तुम्हारे जो जीतने का रोग है वही तो अहंकार है। ____ अब तुम कहते हो, 'कैसा है यह अहंकार! जब-जब मैंने इसे तोड़ने की कोशिश की तब-तब वह बड़ी बेशर्मी के साथ मुझ पर हावी होकर अट्टहास करता रहा।' वह जो तोड़ने की कोशिश कर रहा है, वही अहंकार है। इसीलिए तो बेशर्मी के साथ अट्टहास जारी रहा, जारी रहेगा। तुम समझे ही नहीं बात। अहंकार से लड़कर कोई कभी जीता नहीं, अहंकार को समझकर। और तब भी मैं यह नहीं कहता कि तुम जीत जाओगे। क्योंकि अहंकार को समझा तो अहंकार है ही नहीं; जीतने को कुछ बचता नहीं। जरा आंख को गौर से गड़ाओ अहंकार पर। यह . हारने-जीतने का पागलपन छोड़ो। पहले समझो कि यह अहंकार है क्या! है भी? पहले पक्का तो कर लो। जिस दश्मन से लडने चले हो वह मौजद भी है? कहीं ऐसा तो नहीं कि रात के अंधेरे में छायाओं से लड़ना शुरू कर दिया? टंगा है लंगोट रस्सी पर, सोच रहे हैं भूत खड़ा है। उससे लड़ने लगे। हारोगे। हार निश्चित है। मुश्किल में पड़ जाओगे। पहले रोशनी जलाकर ठीक से देख तो लो, कहीं लंगोट भूत-प्रेत का भ्रम तो नहीं दे रहा? __ और जिन्होंने भी रोशनी जलाकर देखा, उन्होंने पाया कि अहंकार नहीं है। अहंकार है ही नहीं, इसीलिए उस पर जीतना मुश्किल है। जो होता तो जीत भी लेते। जो है ही नहीं उसको जीतोगे कैसे? अगर अंधेरे से लड़े तो हारोगे क्योंकि अंधेरा है ही नहीं। प्रकाश से लड़ो तो जीत भी सकते हो क्योंकि प्रकाश है। बुझा सकते हो प्रकाश को। जला सकते हो प्रकाश को। अंधेरे का क्या करोगे? न जला सकते, न बुझा सकते, न हटा सकते। तुमने देखा? कितने अवश हो जाओगे। छोटी-सी कोठरी में अंधेरा भरा है, तुम धक्के दे-देकर बाहर निकालो। एक दिन हारोगे, थकोगे, अपने आप परेशान हो जाओगे। और तब तुम्हें ऐसा लगेगा कि अंधेरा बड़ा शक्तिशाली है। देखो, मैं कितना लड़ता हूं, फिर भी हार रहा हूं। सचाई उल्टी है; अंधेरा है ही नहीं इसलिए तुम हार रहे हो। अंधेरा होता तो कोई उपाय बन जाता। दंड-बैठक लगा लेते, व्यायाम कर लेते, योगासन करते, और दस-पांच पहलवानों को ले आते, मित्रों की निमंत्रित कर लेते, नौकर-चाकर रख लेते। धक्का देकर निकाल ही देते। तलवारें ले आते, कुछ कर लेते। सदगुरुओं के अनूठे ढंग 309
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy