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________________ अनुयायी का मतलब होता है, हम मानते हैं। आप जो कहते हैं उसको मानते हैं। आप कहते हैं, तुम हमारे अनुयायी नहीं? बिलकुल ठीक कहते हैं। हम आपके अनुयायी नहीं। आपको ही मानकर चलते हैं। जैसा आप कहते हैं, ठीक अक्षरशः हम वैसा ही मानते हैं । अनुयायी पैदा हो गया। जहां सत्य की घोषणा होगी वहां अनुगमन पैदा होगा। जहां धर्म होगा वहां संप्रदाय पैदा होगा। इससे बचा नहीं जा सकता। जहां संप्रदाय है वहां भी धर्म पैदा हो सकता है और जहां धर्म है वहां संप्रदाय पैदा हो जाता है। अपना-अपना रुझान। रमण को प्रीतिकर हैं पुराने शब्द । पुराने शब्दों में कुछ बुराई नहीं। किसी को प्रीतिकर है नये शब्दों का गढ़ना । इसमें भी कुछ बुराई नहीं है । अपनी मौज । फिर तुममें से किसी को नये शब्द प्रीतिकर लगते होंगे तो ठीक। कैसे भी चलो, चलो तो! किसी को पुराने शब्द ठीक लगते हों तो भी ठीक। कैसे भी चलो, चलो तो ! इस बिबूचन में मत पड़ो, इस विडंबना में मत पड़ो— कौन ठीक ? तुम्हें जो ठीक लग जाये, तुम्हें जिसमें रस आ जाये। चल पड़ो, समय मत गंवाओ। कृष्णमूर्ति का वक्तव्य बगावत का है। लेकिन ऐसा ही तो वक्तव्य किसी दिन अष्टावक्र का था। ऐसा ही वक्तव्य किसी दिन बुद्ध का था। ऐसा ही वक्तव्य किसी दिन कृष्ण का था । फिर उनके पीछे संप्रदाय बन गए। और ऐसे ही तो बुद्ध ने भी चाहा था कि कोई संप्रदाय न बने लेकिन फिर भी संप्रदाय बना। संप्रदाय से बचा नहीं जा सकता। बोले कि संप्रदाय बना। कहा कि संप्रदाय बना । शब्द में बांधा कि शास्त्र निर्मित हुआ । चुप भी नहीं रहा जा सकता, क्योंकि जो मिला है वह प्रगट होना चाहता है । जो हुआ है, अभिव्यक्त होना चाहता है । मेघ घने हो गए हैं, बरसना चाहते हैं । फूल खिल गया है, गंध लुटना चाहती है। नाच जन्मा है, प्राण थिरकना चाहते हैं । गीत गुनगुनाने की अनिवार्यता आ गई। जब गीत - पैदा होता है तो गुनगुनाना ही पड़ता है। और जब तुमने गीत गुनगुनाया तो किसी न किसी का सिर हिलेगा, कोई न कोई प्रेम में पड़ेगा, संप्रदाय निर्मित हो जायेगा। फिर तुम लाख सिर धुनो, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता । एक तहजीब है दोस्ती की एक मियार है दुश्मनी का दोस्तों ने मुरव्वत न सीखी दुश्मनों को अदावत तो आये एक स्तर है दोस्ती का, और एक स्तर होता है दुश्मनी का भी । तुम तो दोस्ती भी करते हो तो भी कुछ स्तर नहीं होता । सदगुरु दुश्मनी भी करते हैं तो भी एक स्तर होता है। एक तहजीब है दोस्ती की एक मियार है दुश्मनी का एक दुश्मनी का भी तल है। एक दुश्मनी की भी खूबी है, रहस्य है । एक तहजीब है दोस्ती की एक संस्कृति है दोस्ती की, एक संस्कृति है दुश्मनी की भी । 302 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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