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________________ आदमियत ने आधे का ही उपयोग किया है इसलिए हमारा एक हाथ चलता है, और एक हाथ नहीं चलता। अब पश्चिम में वे अभ्यास कर रहे हैं कि दूसरा हाथ भी इतना ही चल सकता है। कोई कारण नहीं है। तो अब बच्चों को भविष्य में ऐसा सिखाया जाना है कि दोनों हाथ चलें। तो दोहरी शक्ति हाथ में आ जायेगी। और जब दोनों हाथ चलेंगे तो दोनों मस्तिष्क काम करेंगे। आदमी अब तक अधूरा जीया है। आदमी में बड़ी क्षमता प्रगट होगी अगर दोनों मस्तिष्क काम करने लगे। .. और अगर तुम्हारी कला-कुशलता बढ़ गई...जो बढ़ जाएगी, क्योंकि आदमी को खयाल आ जाए तो फिर उपाय शुरू हो जाते हैं। तो फिर पारी-पारी बदली जा सकती है। आधा मस्तिष्क काम करता है, इसको छः घंटे काम लेने दो, फिर इसको बदल दो। फिर दूसरे मस्तिष्क को काम करने दो। तो एक का विश्राम चलेगा, दूसरे का काम चलेगा। काम की क्षमता बहुत बढ़ सकती है। गुरजिएफ इस पर प्रयोग कर रहा था। लेकिन गुरजिएफ का सारा मामला नाटक था। उसके एक शिष्य ने लिखा है कि उसके साथ यात्रा की उसने एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक। कहा कि फिर कसम खा ली कि जिंदगी में अब कभी इसके साथ यात्रा नहीं करेंगे। क्योंकि उसने ऐसा उपद्रव मचाया! पहले तो स्टेशन पर ही उसने इतना शोरगुल मचाया कि भीड़ इकट्ठी कर ली। गाड़ी दस मिनट लेट हो गई उसके उपद्रव के कारण। फिर वह किसी तरह अंदर चढ़ा, तो जहां सिगरेट नहीं पीना है वहां सिगरेट पीने लगा बैठकर। जहां शराब नहीं पीनी है वहां शराब पीने लगा: फिर वहां शोरगल मचा। फिर ड्राइवर और कंडक्टर भागे आये, फिर किसी तरह उसको समझाया। तो वह अनर्गल बकने लगा। और वह शिष्य जानता है कि वह बिलकुल होश में है। वह कुछ गड़बड़ नहीं कर रहा है। वह कितनी ही शराब पीये, बेहोश होता नहीं था। वह भी एक गहरा अभ्यास है। भारत में अघोरपंथी साधु बहुत दिन से करते रहे। ध्यान की परीक्षा है कि शराब तुम्हारे ध्यान को प्रभावित न करे। कितनी ही शराब पी जाओ और ध्यान अछूता बचा रहे। क्योंकि शराब से अगर ध्यान डूब जाये तो यह कोई ध्यान हुआ! यह तो जरा-सी शराब ने बदल दिया, यह तो जरा-से रसायन ने बदल दिया। यह कोई बहुत गहरा नहीं है। तो शिष्य जानता है, वह सबको समझाता है कि नाटक है, मगर कौन उसकी माने? क्योंकि यह कैसा नाटक? रात दो बजे तक उसने सारी ट्रेन को परेशान कर रखा। यहां तक हालत आ गई कि जहां नहीं उतरना था वहां ड्राइवर ने गाड़ी खड़ी कर दी और कहा, इस आदमी को उतारना पड़ेगा। यह चलने ही नहीं देता, यात्रियों को परेशान कर रहा है। पूरी गाड़ी जुड़ी है तो वह इस कोने से लेकर उस कोने तक आ-जा रहा है, शोरगुल मचा रहा है, सोये आदमियों को हिलाकर जगा रहा है। __ और वह शिष्य परेशान है। और वह शिष्य जानता है, सब उसी के लिए किया जा रहा है। बामुश्किल उस शिष्य ने हाथ-पैर जोड़कर किसी तरह कहा कि अगले स्टेशन पर हमें उतरना ही है, वहां तक तो चले जाने दो। अब जो हो गई भूल, हो गई। अगले स्टेशन पर उतरकर जब वे कार में बैठे तब वह हंसने लगा। उसने कहा, कहो, कैसी रही? तुम बहुत घबड़ा गए थे। घबड़ा गए थे? वह कहता, मैं कंपता रहा। अब कभी तुम्हारे साथ यात्रा नहीं करूंगा। और मैं जानता था कि सब नाटक है। और तुमने मेरी खूब परीक्षा ली। इतना मैंने कोसा तुम्हें निराकार, निरामय साक्षित्व 291
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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