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मुश्किल से होता है कि बुद्ध रोयें। वह आदमी भी घबड़ा गया कि मैंने कुछ ऐसी बात तो नहीं कह दी कि उन्हें चोट लगी हो ? कि मैंने उनके फूल जैसे कोमल हृदय को कोई आघात तो नहीं पहुंचा दिया ? ऐसा मैंने कुछ कहा तो नहीं। वह तो सोचकर ही आया था कि बुद्ध बड़े प्रसन्न होंगे, जब सुनेंगे कि मैं अपना सारा जीवन मनुष्य जाति की सेवा में लगाना चाहता हूं। और यह क्या हुआ कि बुद्ध की आंख से आंसू टपका ?
आनंद भी विह्वल हो गया, और भी भिक्षु विह्वल हो गए। उन्होंने कहा, तुमने कहा क्या आखिर ? उस आदमी ने कहा, मैंने कुछ ऐसी बात कही नहीं, इतना कहा है। बुद्ध से पूछा उन्होंने, कि क्या हुआ? आपकी आंख में आंसू ? उन्होंने कहा, मैं इस आदमी के लिए रोया । इसने अभी अपनी ही सेवा नहीं की और यह सारी दुनिया की सेवा करने चला । इसने अभी अपने को भी नहीं जाना। यह आदमी महादुख में है। यह अपने दुख से बचने के लिए दूसरों की सेवा करने में उलझना चाहता है । यह इसका बचाव है। इसलिए मैं रोता हूं। इसकी करुणा वास्तविक करुणा नहीं है, इसकी करुणा आत्मपलायन है। इसलिए मैं रोता हूं।
बुद्ध और रोते ?
खिन्नोऽपि न च खिद्यते ।
ज्ञानी पुरुष अगर कभी उदास हो, दुखी हो, उसकी आंख में आंसू भी आ जाएं तो जल्दी निष्कर्ष मत लेना। वह अपने लिए नहीं रोता ।
समझो तुम जब भी रोते हो, अपने लिए रोते हो। जब तुम बताते हो कि दूसरों के लिए रो रहे हो तब भी तुम अपने लिए ही रोते हो। पति मर गया किसी का और पत्नी रो रही है; लेकिन वह अपने लिए ही रो रही है, पति के लिए नहीं रो रही । यह सहारा था, सुरक्षा थी, अर्थ की व्यवस्था थी । यह पति का सहारा छूट गया। इस पति के कारण हृदय भरा-पूरा था, एक खाली जगह छूट गई। वह अपने लिए रो रही है। वह पति के लिए नहीं रो रही है।
मैंने सुना है, एक पति मरा— स्वभावतः घटना अमरीका की है— इंश्योरेंस कंपनी का आदमी आया, उसने एक लाख डालर का चेक पत्नी को दिया। पति का बीमा था। पत्नी ने कहा, धन्यवाद । अगर मेरा पति मुझे वापिस मिल जाए तो इसमें से आधी राशि मैं अभी भी लौटा सकती हूं - आधी ! वह भी पूरी न लौटा सकी। पति वापिस मिलने को है भी नहीं, पति तो मर गया। इसमें से अभी भी
राशि वापिस लौटा सकती हूं !
कनफ्यूशियस की बड़ी प्राचीन कथा है कि कनफ्यूशियस एक गांव से गुजरता था और उसने एक स्त्री को एक कब्र पर पंखा करते देखा। बड़ा हैरान हुआ । इसको कहते हैं प्रेम ! पति तो मर गया, कब्र को पंखा कर रही है? उसने पूछा कि देवी, सुना है मैंने पुराणों में कि ऐसी देवियां हुई हैं, लेकिन अब होती हैं सोचता नहीं था। लेकिन धन्य ! तेरे दर्शन हुए, चरण छू लेने दे। उसने कहा, रुको। पहले पूछ तो लो कि क्यों पंखा हिला रही है ? क्यों हिला रही है ? कनफ्यूशियस ने पूछा। उसने कहा कि जब मेरा पति मरा तो उसने कहा कि देख, विवाह तो तू करेगी ही, लेकिन जब तक मेरी कब्र न सूख जाये, मत करना। पंखा हिला रही हूं? कब्र को सुखा रही हूं। गीली कब्र । अब पति को वचन दे दिया।
हम अपने लिए ही रोते हैं। जब कोई मर जाता है तब भी हम अपने लिए रोते हैं। जब राह से
. निराकार, निरामय साक्षित्व
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