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जानते हो, फिर भी भूल-भूल जाते हो। रो भी लेते हो, हंस भी लेते हो। रूमाल आंसुओं से गीले हो जाते हैं। तरंगित हो लेते हो, प्रसन्न हो लेते हो, दुखी हो लेते हो। तीन घंटे भूल ही जाते हो।
जहां-जहां टेलीविजन फैल गया है वहां लोग घंटों...अमरीकन आंकड़े मैं पढ़ रहा था, प्रत्येक अमरीकन कम से कम छः घंटे प्रतिदिन टेलीविजन देख रहा है-छ: घंटे! छोटे-छोटे से बच्चे से लेकर बड़े-बड़े तक बचकाने हैं। तुम देख क्या रहे हो?
ज्ञानी कहते हैं, संसार झूठ है, तुम झूठ में भी सच देख लेते हो। तुम पर्दे पर जहां कुछ भी नहीं है, धूप-छाया का खेल है, आंदोलित हो जाते हो, सुखी-दुखी हो जाते हो, सब भांति अपने को विस्मरण कर देते हो। फिल्म में जाकर बैठ जाने का सुख क्या है? थोड़ी देर को तुम भूल जाते हो। फिल्म एक तरह की शराब है। दृश्य इतना जकड़ लेता है तुम्हें कि कर्ता बिलकुल संलग्न हो जाता है, भोक्ता संलग्न हो जाता है और साक्षी भूल जाता है। उस विस्मरण में ही शराब है। तीन घंटे बाद जब तुम जागते हो उस विस्मरण से, जो फिल्म तुम्हें सुला देती है तीन घंटे के लिए अपने साक्षीभाव में, उसी को तुम अच्छी फिल्म कहते हो। जिस फिल्म में तुम्हें अपनी याद बार-बार आ जाती है, तुम कहते हो, कुछ मतलब की नहीं है। जिस उपन्यास में तुम भूल जाते हो अपने को पढ़ते समय, कहते हो, अदभुत कथा है। ____ अदभुत तुम कहते उसको हो जिसमें शराब झरती है, जहां तुम भूल जाते हो, जहां विस्मरण होता है। जहां स्मरण आता है वहीं तुम कहते हो कथा में कुछ सार नहीं, डुबा नहीं पाती। बार-बार अपनी याद आ जाती है।
'जब मनुष्य अपनी आत्मा के अकर्तापन और अभोक्तापन को मानता है तब उसकी संपूर्ण चित्तवृत्तियां निश्चयपूर्वक नाश को प्राप्त होती हैं।' ___जानने योग्य, मानने योग्य, होने योग्य एक ही बात है और वह है, अकर्तापन और अभोक्तापन। अकर्तापन, अभोक्तापन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
भोक्ता और कर्ता साथ-साथ होते हैं। जो भोक्ता है वही कर्ता बन जाता है। जो कर्ता बनता है वही भोक्ता बन जाता है। एक दूसरे को सम्हालते हैं।
जो इन दोनों से मुक्त हो जाता है उसकी चित्तवृतियां निश्चयपूर्वक नाश को उपलब्ध होती हैं। फिर उसे निरोध नहीं करना पड़ता, चेष्टा नहीं करनी पड़ती। कैसे अपनी चित्तवृत्तियों को त्याग दूं इसके लिए कोई उपाय नहीं करना पड़ता। ऐसा जानकर, ऐसा देखकर, ऐसा समझकर कि मैं केवल साक्षी हूं, चित्तवृत्तियां अपने से ही शांत हो जाती हैं।
साक्षी के साथ मन जीता नहीं। साक्षी के साथ मन की तरंगें खो जाती हैं। और मन की तरंगों का खो जाना ही तो फिर परमात्मा की तरंगों का उठना है। जहां तुम्हारा मन गया वहीं प्रभु आया। इधर तुम विदा हुए, उधर प्रभु का पदार्पण हुआ। तुम करो खाली सिंहासन तो प्रभु आ जाता है। ___तुम अकड़कर बैठे हो, कर्ता-भोक्ता बने बैठे हो। तुम किसी तरह अगर छूटते भी हो संसार से तो भी तुम कर्ता-भोक्तापन से नहीं छूटते। फिर तुम कहते हो स्वर्ग चाहिए। वहां भी भोंगेंगे। भोग जारी है। अगर तुम संसार से छूटते भी हो तुम कहते हो, तप करेंगे, ध्यान करेंगे; जप करेंगे, पूजा, प्रार्थना, यज्ञ, हवन, करेंगे; लेकिन करेंगे। कर्तापन फिर भी जारी रहा।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5