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क पुरानी चीनी कथा है, जंगल में कोई लकड़हारा लकड़ियां काटता था। अचानक देखा कि उसके पीछे
आकर खड़ा हो गया है एक बारहसिंगा - सुंदर, अति सुंदर, अति स्वस्थ । लकड़हारे ने अपनी कुल्हाड़ी उसके सिर पर मार दी। बारहसिंगा मर गया। तब लकड़हारा डरा; कहीं पकड़ा न जाए। क्योंकि वह राजा का सुरक्षित वन था और शिकार की मनाही थी। तो उसने एक गड्ढे में छिपा दिया उस बारहसिंगे को, ऊपर से मिट्टी डाल दी और वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगा ।
अब लकड़ियां काटने की कोई जरूरत न थी। काफी पैसे मिल जाएंगे बारहसिंगे को बेचकर । सांझ जब सूरज ढल जाएगा और अंधेरा उतर आयेगा तब निकालकर बारहसिंगे को अपने घर ले जाएगा। अभी तो दोपहर थी।
वह वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगा और उसकी झपकी लग गई। जब उठा तो सूरज ढल चुका था और अंधेरा फैल रहा था। बहुत खोजा लेकिन वह गड्डा मिला नहीं, जहां बारहसिंगे को गड़ा दिया था। तब उसे संदेह होने लगा कि हो न हो, मैंने स्वप्न में देखा है। कहीं ऐसे बारहसिंगे पीछे आकर खड़े होते हैं! आदमी को देखकर भाग जाते हैं, मीलों दूर से भाग जाते हैं। जरूर मैंने स्वप्न में देखा है और मैं व्यर्थ ही परेशान हो रहा हूं।
हंसता हुआ, अपने पर ही हंसता हुआ घर की तरफ वापिस लौटने लगा | यह भी खूब मूढ़ता हुई राह में एक दूसरा आदमी मिला तो उसने अपनी कथा उससे कही कि ऐसा मैंने स्वप्न में देखा । और फिर मैं पागल, उस गड्ढे को खोजने लगा ।
उस दूसरे आदमी को हुआ, हो न हो इस आदमी ने वस्तुतः बारहसिंगा मारा है। लकड़हारा तो घर चला गया, वह आदमी जंगल में खोजने गया और उसने बारहसिंगा खोज लिया। चोरी-छिपे वह अपने घर पहुंचा। उसने अपनी पत्नी को सारी कथा कही कि ऐसा लकड़हारे ने मुझे कहा और उसने यह भी कहा कि स्वप्न देखा है। अब मैं कैसे मानूं कि स्वप्न देखा है ? स्वप्न कहीं सच होते हैं? यह बारहसिंगा सामने मौजूद है। तो स्वप्न नहीं देखा होगा, सच में ही हुआ होगा ।
लेकिन पत्नी ने कहा, तुम पागल हो। तुम दोपहर को सोये तो नहीं थे जंगल में? उसने कहा, मैं