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नूपुर के स्वर बिखरे दालानों में अहोभाव-उसके नूपुर। अहोभाव-उसके आने की हवा का झोंका। अहोभाव-उसकी पहली किरणें।
हो गई देह कस्तूरी-कस्तूरी अहोभाव-उसके आने की सुगंध। जैसे तुम आते हो कभी बगीचे के करीब और हवाएं ठंडी हो जाती हैं और हवाएं सुरभीली हो जाती हैं और हवाओं में सुवास आ जाती है। तुम्हें दिखायी भी नहीं पड़ता अभी बगीचा लेकिन फिर भी तुम जानते हो दिशा ठीक है। अहोभाव ठीक दिशा का लक्षण है।
हो आयीं जूड़े की अलकें ढीली
ये विरह अंत आने के लक्षण हैं प्यारा बहुत करीब है और विरह का अंत करीब आ रहा है।
आंगन की धूप हो गई सोनीली
ये तो वसंत आने के लक्षण हैं अहोभाव वसंत है अध्यात्म का।
आज इतना ही।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5